रविवार, 15 दिसंबर 2019

विरह का अंग २४/२८

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी 
*(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग-३)*
.
*श्रवणा राते नाद सौं, नैनां राते रूप ।* 
*जिभ्या राती स्वाद सौं, त्यों दादू एक अनूप ॥२४॥* 
जैसे घ्राणेन्द्रिय अपने विषय गन्ध में आसक्त है, नेत्र अपने विषय रूप में, जिव्हा अपने विषय रस में आसक्त है, उसी प्रकार भक्त का मन अनुपम एकमात्र ब्रह्म में आसक्त है ॥२४॥ 
*विरह उपदेश* 
*देह पियारी जीव को, निशदिन सेवा मांहि ।* 
*दादू जीवन मरण लौं, कबहूं छाड़ी नांहि ॥२५॥* 
*देह पियारी जीव को, जीव पियारा देह ।* 
*दादू हरि रस पाइये, जे ऐसा होइ स्नेह ॥२६॥* 
यह देह जीव को बहुत प्रिय है, और इस देह को यह जीव प्यारा है । इसीलिये यह जीवात्मा मरणपर्यन्त देह की सेवा में ही अनुरक्त रहता है । यदि जीव को परमात्मा प्रिय हो जाय तो हरिरस की प्राप्ति हो जाय । देह की तरह हमें परमात्मा प्रिय लगना चाहिये ॥२५-२६॥ 
*दादू हरदम मांहि दिवान, सेज हमारी पीव है ।* 
*देखूँ सो सुबहान, ये इश्क हमारा जीव है ॥२७॥* 
मैं हृदयशय्या पर साक्षिरूपस्वरूप से विद्यमान पवित्र परमात्मा को देखता हूँ । यह परम प्रेम ही मेरा जीवन है ॥२७॥ 
*दादू हरदम मांहि दिवान, कहूँ दरुने दर्द सौं ।* 
*दर्द दरुने जाइ, जब देखूँ दीदार कों ॥२८॥* 
वह प्रभु सर्वव्यापि, न्यायकारी, मेरे हृदय में प्राणों को सञ्चालन करते हुए विराजमान है, किन्तु उनका दर्शन नहीं हो रहा है-यही मेरी पीड़ा है और यही मेरी सबसे बड़ी हानि हो रही है । अतः मैं व्यथित हृदय से आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ कि हे प्रभो ! आपके दर्शनों से ही मेरा यह दुःख-दर्द जाने वाला है, अन्यथा नहीं ॥२८॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें