#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= (८.संख्या बर्णन. ८) =*
.
*सनकादि बारि निद्धि संप्रदा उपाइ अंग,*
*जोधार चरन दिशि च्यार अतःकरन है ॥*
*तत्व शर इन्द्री हरमुख पांडु वर्ग यज्ञ*
*पित मात कन्या पाप बायु पंच बरन है ॥*
*शासतर संपति करम दरशन रितु,*
*रस राग अंग यती षट सु तरन है ।*
*धात दीप तृड ॠषि बार हय परबत*
*समुंदर पूरी सात कहत धरन है ॥८॥*
सनकादि चार, ब्रह्मा के पुत्र = सनक, सनंदन, सनत्कुमार, सनातन, वारि, निधि = जल निधि । समुद्र के अर्थ में “जलनिधि” चार संख्या के लिए कहीं रूढ नहीं मिलता । न तो निधि चार मिलती है और न वारि ही चार मिलते है । हो सकता है यह अशुद्ध पाठ हो । सम्भव हे वारि निधि के स्थान पर वारणरद पाठ हो, जिसका हाथी(ऐरावत) के चार दांत अर्थ में प्रयोग हो ।
संप्रदा = संप्रदाय चार हैं – श्री सम्प्रदाय, निबार्क, माध्व और वल्लभाचार्य ।
उपाइ = साम, दाम, दंड, भेद ।
अंग = मस्तक, धड, हाथ, पांव ।
जोधार = योद्धा चार प्रकार – गजरोही, अश्वरोही, रथारोही, पदाति(पैदल) चरन = चरण-छंद के चार और चोपायों के चार पद वा पांव ।
दिशिच्यार = दिशा चार-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अतःकरण चतुष्टय = मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ।
पाँच वाची संख्या – तत्त्व पाँच – पृथ्वी आप, तेज, वायु, आकाश
शर = कामदेव के पाँच तीर – मोह, मत्त, शोष, विरह, अचेतन,
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ – आँख, कान, नाक, जीभ, खाल(त्वचा) ।
हरमुख = महादेवजी के पाँच मुख जिनसे वे पंचमुख कहाते हैं ।
पाँच पांडव = युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव
वर्ग = पाँच वर्ग = कु चु टु तु पु = क वर्गादि पाँच अक्षरों के(वर्णमाला में)
यज्ञ = पंच महायज्ञ – स्वाध्याय, अग्निहोत्र, अतिथि-पूजन, पितृतर्पण, बलिवैश्र्वदेव ।
पाँच पिता = जन्म देने वाला, राजा, जीवनदान देने वाला, गुरु(दीक्षा वा विद्या देने वाला) और ससुर ।
पाँच माता = जननी, गुरु पत्नी, राजा की रानी, सास, मित्र पत्नी ।
पाँच कन्या = अहिल्या, द्रौपदी, तारा, कुंती, मंदोदरी
पंच पाप = ब्रह्म हत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरु पत्नी गमन और इनके साथ संसर्ग ।
पाँच वायु = प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान ।
वरन = वर्णित ।
छह शास्त्र ६ = चारों वेद, पुराण और धर्म शास्त्र(स्मृति) ।
छह संपत्ति = सम, दम, तितिक्षा, श्रद्धा, उपरति, समाधान ।
छह कर्म = छहकर्म – यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान लेना, दान देना ।
दर्शन = छह दर्शन – सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत ।
ॠतू = छह ॠतू – वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर ।
रस= षट् रस –षट्टा, मीठा, खारा, कड़ुवा, चरपरा, कसैला ।
राग = छह राग – भैरव, मालकौंस, हिंडोल, दीपक, श्री, मेघ(मलार)
अंग = वेद के छह अंग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष, निरुक्त । यति = लक्षमण, हनुमान, भीष्म, भैरव, दत्त और गोरख ।
तरन = तृण – छह चारे – घास, कडब, पत्ते, पन्नी, तुस, दाणां ।
सात की संख्या = धातु = ७ धातु = सोना, चांदी, तांबा, लोहा, रांगा, सीसा, पारा अथवा
शरीरस्थ सप्त धातुएँ – रस, रक्त, मांस, मेद, हाड़, चरबी, वीर्य ।
दीप = सप्त दीप – जम्बू, शाक, कुश, क्रोंच, शाल्मलि, लक्ष और पुष्कर दीप ।
तूड = सप्त अन्न – जो, गेहूँ, चावल, मूंग, अरहर, उड़द, चना ।
ॠषि = सप्त ॠषि – कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, वशिष्ठ, यमदग्नि,
बार = सप्तवार । रवि, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि ।
हय = सूर्य के सात घोड़े ।
७ पर्वत = सुमेरु, हिमालय, उदयाचल, विंध्याचल, लोकालोक, गंधमादन, कैलाश,
७ समुद्र = क्षीर, क्षार, दधि, मधु, धृत, सूरा, इक्षुरस ।
७ पुरी = अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, द्वारिका, उज्जयनि,
धरन = धरणी, पृथ्वी पर ॥८॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें