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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*स्मरण नाम विरह*
*दादू जगत सुपना ह्वै गया, चिंतामणि जब जाइ ।*
*तब ही साचा होत है, आदि अंत उर लाइ ॥९६॥*
जगत् का व्यवहार भी हरिभक्ति के विना स्वप्नवत् मिथ्या ही है । जीवन की सफलता तो तभी मानी जायेगी जब वह जन्म से मरण पर्यन्त हरि चिन्तन में लगे । न कि विषय-लोभ से बीच में ही भूल जाय । भागवत में कहा है-
“अजितेन्द्रिय देवताओं के द्वारा प्रार्थनीय जो त्रिभुवन के भोग हैं, वे यदि प्राप्त भी होते हों तो भी उन के लोभ में न पड़कर जो भगवान् को नहीं भूलता और एक क्षण भी भगवच्चारणारविन्द से चित्तवृत्ति नहीं हटने देता वही श्रेष्ठ वैष्णव भक्त है” ॥९६॥
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*नांव न आवै तब दुखी, आवै सुख संतोष ।*
*दादू सेवक राम का, दूजा हर्ष न शोक ॥९७॥*
हरिभक्तों के हृदय में भगवान् की विस्मृति का ही बड़ा दुःख होता है कि यह विस्मृति किस पाप का फल है? कब फिर भगवान् की स्मृति होगी? हरिभक्त सांसारिक सुख-दुःख से कभी सुखी या दुःखी नहीं होता । लिखा है-
“सांसारिक पुरुष भवदुःखरूपी अरहट(चक्की) से दुःखी रहते हैं, पिसते रहते हैं । कृष्ण के भक्त दुःखों से युक्त होकर सदा आनन्द में रहते हैं ।”
अतः साधक को चाहिये कि सांसारिक दुःखों से मुक्ति पाने के लिये भगवान् को निरन्तर भजे । भागवत में भी लिखा है-
“अनेक दुःखरूपी दावानल से दुःखी मानव को संसार समुद्र को पार करने के लिये भगवान् पुरुषोत्तम की लीलाकथाओं के श्रवण के अतिरिक्त अन्य कोई नौका नहीं है” ॥९७॥
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*मिले तो सब सुख पाइये, बिछुरे बहु दु:ख होइ ।*
*दादू सुख दु:ख राम का, दूजा नाहीं कोइ ॥९८॥*
*दादू हरि का नाम जल, मैं मीन ता माहिं ।*
*संगि सदा आनन्द करै, बिछुरत ही मर जाहिं ॥९९॥*
“भक्त पीड़ित, दुःखी, शिथिल, भयभीत एवं धीर व्याधिकाल में भी ‘नारायण’- यह शब्द उच्चारण कर दुःखरहित हो सुखी हो जाते हैं ।”
“जब नाम की विस्मृति होती है वही उनका राम से वियोग है । उस समय वे दुःखी हो जाते हैं कि यह विस्मृति कैसे हुई? और कोई दूसरा दुःख भक्तों को नहीं होता । यह पहले बताया जा चुका है ।”
“सांसारिक विपत्ति विपत्ति नहीं, और सांसारिक सम्पत्ति सम्पत्ति नहीं, किन्तु हरि की विस्मृति ही विपत्ति है, और हरिस्मरण ही सम्पत्ति है ।”
हरि के वियोगकाल में कैसा दुःख होता है?-इस बात को श्रीदादूजी महाराज दादू हरि का नाम है - इस साखी वचन से बता रहे हैं । जैसे मछली जल से बाहर निकलते ही प्राण दे देती है और जल में रहने से ही वह सुखी रहती है; वैसे ही भक्त हरिनाम के साथ संयोग होने पर सुखी एवं वियोग होने पर दुःखी होता है ।
(क्रमशः)

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