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*सतगुरु संतों की यह रीत, आत्म भाव सौं राखैं प्रीत ।*
*ना को बैरी ना को मीत, दादू राम मिलन की चीत ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *अहिंसा*
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भैराणा पर्वत पर जहां सन्तवर दादूजी के चरण-चिहन है, वहां के संत रामनारायणजी तथा रामकादासजी जंगली जीवों को जब खाने को देते थे, तब उनके सामने नकुल, सर्प, मोर, बिलाव, चुहा आदि जिनका स्वाभाविक बैर है, वे सब जीव सहज बैर को भूल कर प्रेम से खाते थे ।
संत अहिंसक सामने, सहज बैर भी जाय ।
रामनारायण पास में, तज विरोध सब खाय ॥११४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###
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