मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

*नरेन्द्र-होमापक्षी*


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*अनिल पंखी आकाश को, माया मेरु उलंघ ।* 
*दादू उलटे पंथ चढ, जाइ बिलंबे अंग ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)* 
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* 
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ 
*नरेन्द्र-होमापक्षी* 
नरेन्द्र की बात चली । श्रीरामकृष्ण भक्तों से कहने लगे, “इस लड़के को यहाँ एक प्रकार देखते हो । चुलबुला लड़का जब बाप के पास बैठता है, तब चुपचाप बैठा रहता है और जब चाँदनी पर खेलता है, तब उसकी और ही मूर्ति हो जाती है । ये लड़के नित्यसिद्ध हैं । ये कभी संसार में नहीं बँधते । थोड़ी ही उम्र में इन्हें चैतन्य होता है, और ये ईश्वर की ओर चले जाते हैं । ये संसार में जीवों को शिक्षा देने के लिए आते हैं । संसार की कोई वस्तु इन्हें अच्छी नहीं लगती; कामिनी-कांचन में ये कभी नहीं पड़ते ।” 
“वेदों में ‘होमा’ पक्षी की कथा है । यह चिड़िया आकाश में बहुत ऊँचाई पर रहती है । वहीँ यह अण्डे देती है । अण्डा देते ही वह गरियाने लगता है; परन्तु इतने ऊँचे से वह गिरता है कि गिरते गिरते बीच ही में फूट जाता है । तब बच्चा गिरने लगता है । गिरते ही गिरते उसकी आँखें खुलती और पंख निकल आते हैं । आँखें खुलने से जब वह बच्चा देखता है कि मैं गिर रहा हूँ और जमीन पर गिरकर चूर चूर हो जाऊँगा, तब वह एकदम अपनी माँ की ओर फिर ऊँचे चढ़ जाता है ।” 
नरेन्द्र उठ गए । सभा में केदार, प्राणकृष्ण, मास्टर आदि और भी कई सज्जन थे । 
श्रीरामकृष्ण- देखो, नरेन्द्र गाने में, बजाने में, पढ़ने-लिखने में, सब विषयों में अच्छा है । उस दिन केदार के साथ उसने तर्क किया था, केदार की बातों को खटाखट काटता गया । (श्रीरामकृष्ण और सब लोग हँस पड़े ।)- 
(मास्टर से) अंग्रेजी में क्या कोई तर्क की किताब है? 
मास्टर- जी हाँ है, अंग्रेजी में इसको न्यायशास्त्र(logic) कहते हैं । 
श्रीरामकृष्ण- अच्छा, कैसा है कुछ सुनाओ तो । 
मास्टर अब मुश्किल में पड़े । आखिर कहने लगे- एक बात यह है कि साधारण सिद्धान्त से विशेष सिद्धान्त पर पहुंचना; जैसे, सब मनुष्य मरेंगे, पण्डित भी मनुष्य हैं, इसलिये वे भी मरेंगे । 
“और एक बात यह है कि विशेष दृष्टान्त या घटना को देखकर साधारण सिद्धान्त पर पहुँचना । जैसे यह कौआ काला है, वह कौआ काला है और जितने कौए दीख पड़ते हैं, वे भी काले हैं, इसलिये सब कौए काले हैं । 
“किन्तु उस प्रकार के सिद्धान्त से भूल भी हो सकती है; क्योंकि सम्भव है ढूँढ़-तलाश करने से किसी देश में सफेद कौआ मिल जाय । 
एक और दृष्टान्त- जहाँ वृष्टि है, वहाँ मेघ भी है, अतएव यह साधारण सिद्धान्त हुआ कि मेघ से वृष्टि होती है । 
और भी एक दृष्टान्त- इस मनुष्य के बत्तीस दाँत हैं, उस मनुष्य के बत्तीस दाँत हैं, और जिस मनुष्य को देखते हैं, उसी के बत्तीस दाँत हैं, अतएव सब मनुष्यों के बत्तीस दाँत हैं । 
“इस प्रकार के साधारण सिद्धान्त की बातें अंग्रेजी न्यायशास्त्र में हैं ।” 
श्रीरामकृष्ण ने इन बातों को सुन भर लिया । फिर वे अन्यमनस्क हो गए इसलिये यह प्रसंग और आगे न बढ़ा । 
(क्रमशः)

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