🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू संगी सोई कीजिये, जे कबहूँ पलट न जाइ ।*
*आदि अंत बिहड़ै नही, ता सन यहु मन लाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ अबिहड़ का अंग)*
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साभार ~ महन्त Ram Gopal तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *मैत्री*
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डामन और पीथियस दो मित्र थे, किसी कारण राजा ने डामन को फाँसी की आज्ञा दी और कहा - डामन के बदले यदि कोई अन्य जैल में रहने को तैयार हो और समय पर डामन नहीं आवे, तो उसे फाँसी चढा दिया जाय, यह जिसे स्वीकार हो, तो डामन घर जा सकता है । पिथियस ने डामन के बिना पुछे यह शर्त स्वीकार कर ली । डामन घर गया, आते समय वायु विरुद्ध होने से डामन की नाव समय पर नहीं पहुँच सकी । पीथियस को फाँसी के मचान पर चढाया गया । उसे हर्ष था । लोगों ने कहा -- डामन ने अच्छा नहीं किया, जो समय पर नहीं आया । यह सुन पीथियस बोला - कई दिनों से वायु विपरीत चल रही है, इसी से वह नहीं पहुँच सका है । उसका कोई दोष नहीं ।
इतने ही में जोर से आवाज सुनाई दी -ठहरो -ठहरो, मैं मचान पर पहुँचा हूँ । देखते देखते ही घोड़े से कूदकर डामन फाँसी के मचान पर जा चढा । दोनों मित्र मिले । डामन - भगवान को धन्यवाद है, जो तुम्हारी प्राण रक्षा की । पीथियस - भगवान् ने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी, तुम दो मिनट बाद क्यों नहीं आये । तब दोनों मित्रों का दृश्य देखकर राजा का हृदय नरम हो गया । उसने कहा - दोनों मचान से उतर जाओ, मैं ऐसे मित्रों की जोड़ी को तोड़ना नहीं चाहता । मित्रता के प्रभाव से दोनों के प्राण बच गये ।
मित्र-मित्र हित प्राण भी, देने को तैयार ।
डामन पीथियस उभय भये, इसी हेतु दुख पार ॥१५०॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^
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