🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*सतगुरु मिलै न संशय जाई,*
*ये बँधन सब देइ छुड़ाई ।*
*तब दादू परम गति पावै,*
*सो निज मूरति मांहि लखावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३४६)*
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साभार ~ महन्त Ram Gopal तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *साधना*
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मङ्कण ऋषि घोर तप में लगे थे, एक दिन उन के हाथ में कुश चुभ गई, उससे कुछ पानी की बूँदे निकली । इससे ऋषि के मन में विचार उठा कि तपस्या के द्वारा मेरे रुधिर का भी पानी हो गया है, मेरे समान तपस्वी संसार में कोई नहीं है । ऐसे अभिमान के हर्ष से हर्षित होकर नृत्य करने लगे । उनके नृत्य के बल से सब संसार ही नाचने लगा, यह देख कर नटराज(भगवान शंकर) उनके पास गये और नृत्य का कारण पूछा ।
बताने पर शंकरजी ने कहा -- यह तो कोई बड़ी बात नहीं मेरा अँगुठा देखो तो सही, मेरे शरीर की तो हड्डियाँ भी भस्म रूप हो गई है । शंकरजी के अँगुठे से भस्म निकलती हुई देखकर ऋषि का नृत्य बंद हो गया और वे लज्जित हो गये । कारण शंकरजी के शरीर में तो पानी भी नहीं निकला । केवल भस्म ही दिख पड़ी थी । इससे सूचित होता है कि साधन के गर्व से अन्त में लाज लगती है ।
साधन के अभिमान से, अन्त लगत है लाज ।
मङ्कण को लज्जित किया, भस्म दिखा नटराज ॥१५४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^
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