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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त Ram Gopal तपस्वी
(श्री दादूवाणी ~ ८. निहकर्मी पतिब्रता कौ अंग)
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*॥ पतिव्रत ॥*
*दादू मनसा वाचा कर्मना, अंतर आवै एक ।*
*ताको प्रत्यक्ष राम जी, बातें और अनेक ॥४४॥*
जो मन से अन्तर्निष्ठ वृत्ति के द्वारा भगवान् का चिन्तन, वाणी से उनका गुणानुवाद, शरीर से उनके निमित्त कर्म करता है । उसको ब्रह्म का प्रत्यक्ष दर्शन हो जाता है ।
भगवान् केवल दार्शनिक बातों से कभी प्रसन्न नहीं होते, वह तो वाणी का विलास मात्र है । श्रीभागवत में लिखा है कि-
“शरीर मन वाणी इन्द्रियों से जो भी स्वाभाविक कर्म होते हैं वे सब नारायण के अर्पण कर दो । हे राजन् इस प्रकार भगवान् को भजते-भजते भक्ति वैराग्य तथा ज्ञान का प्रबोध भक्त को भगवान् की कृपा से प्राप्त हो जाते हैं । उनसे भक्त परमशान्ति को प्राप्त हो जाता है ।”
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*दादू मनसा वाचा कर्मना, हिरदै हरि का भाव ।*
*अलख पुरुष आगे खड़ा, ताके त्रिभुवन राव ॥४५॥*
*दादू मनसा वाचा कर्मना, हरि जी सौं हित होइ ।*
*साहिब सन्मुख संग है, आदि निरंजन सोइ ॥४६॥*
*दादू मनसा वाचा कर्मणा, आतुर कारण राम ।*
*सम्रथ सांई सब करै, परगट पूरे काम ॥४७॥*
जो मन वाणी शरीर से भगवान् को प्रसन्न करता है, उसको आदि अन्त से रहित निराकार ईश्वर का प्रत्यक्ष हो जाता है । क्योंकि वह सर्वसमर्थ है । वह भक्तों के सभी कार्यों को सम्पन्न कर देता है । अतः भक्त अपने मन में दर्शनों के लिये अति उत्कट उत्कण्ठा जागृत करें ऐसा करने से भक्त के मन में दर्शनों की जितनी आतुरता होगी तो भगवान् उसके सामने प्रत्यक्ष दर्शन देने के लिये आ जायेंगे और फिर भक्त के संगी बन जायेंगे । श्री भागवत में लिखा है कि-
“पापों का नाश करने वाले भगवान् प्रेम के विवश होकर भक्त के हृदय को नहीं छोडते क्योंकि भक्त ने प्रेम रूपी रस्सी से भगवान् के चरण कमलों को बांध रखा है । ऐसा भक्त भागवत में प्रधान भक्त माना जाता है ।”
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*नारी पुरुषा देख करि, पुरुषा नारी होइ ।*
*दादू सेवक राम का, शीलवन्त है सोइ ॥४८॥*
जो नारी पर पुरुष को देखकर उसको नारी की दृष्टि से देखती है । तथा जो पुरुष परनारी को देख कर उसके साथ पुरुष का सा व्यवाहर करता है । ये दोनों ही शीलवान् कहलाते हैं । क्योंकि नारी नारी के रूप पर मोहित नहीं होती । ऐसे ही जिस भक्त का मन भगवान् को देखकर भगवद्रूप हो जाता है तो वह भक्त भक्तों में श्रेष्ठ माना जाता है ।
(क्रमशः)
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