बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

निहकर्मी पतिब्रता कौ अंग ६८/७१

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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । 
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ 
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त Ram Gopal तपस्वी 
(श्री दादूवाणी ~ ८. निहकर्मी पतिब्रता कौ अंग) 
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*सो धक्का सुनहाँ को देवै, घर बाहर काढै ।* 
*दादू सेवक राम का, दरबार न छाड़ै ॥६८॥* 
जैसे कुत्ते को दण्डे से मार मार कर घर से बाहर निकाल देने पर भी स्वामी को नहीं छोड़ता । ऐसे ही भक्त भी नाना दुःखों से दुःखित होने पर और भगवान् के अंगीकार न करने पर भी भगवद् भजन को, तथा भगवान् के दरबार में पड़ा हुआ उनको कभी नहीं छोड़ता । क्योंकि वह स्वामीभक्त है किन्तु मान अपमान से रहित सब द्वन्दों की तितिक्षा करता हुआ भगवान् के चरणों में पड़ा रहता है और उसी का सतत भजन करता रहता है । क्योंकि ऐसे भक्तों का उद्धार भगवान् करने वाले हैं और परमात्मा ही उनकी गति है । गीता में लिखा है कि- 
मानापमान में तथा शत्रु मित्र में तुल्य रहता हुआ सर्वकर्म को त्याग देता है । वह भक्तगुणातीत कहलाता है । सुख-दुःख में समान सदा स्वस्थ पत्थर सोना जिसकी दृष्टि में समान है, प्रिय अप्रिय की प्राप्ति में तुल्य, जिसके निन्दा स्तुति समान है ऐसा धीर पुरुष भगवान् का गुणातीत भक्त होता है । 
*साहिब का दर छाड़ि कर, सेवक कहीं न जाय ।* 
*दादू बैठा मूल गह, डालों फिरै बलाय ॥६९॥* 
निष्काम भक्त पतिव्रता भार्या की तरह मेरे भजन को नहीं छोड़ता और स्वर्गादि लोकों को देने वाले भोगप्रधान काम्यकर्मों में भी प्रवृत्त नहीं होता । ने देवताओं की उपासना करता क्योंकि वह एक ब्रह्मनिष्ठ है । भागवत में लिखा है कि- 
जब यह मनुष्य सब कर्मों को छोड़कर मुझे आत्म निवेदन करे, तब मेरे किये श्रेष्ठ कर्म करने के योग्य होता है । उसी से वह मोक्ष को प्राप्त जाता है और निश्चय ही मेरे समान ऐश्वर्य के योग्य हो जाता है । 
*दादू जब लग मूल न सींचिये, तब लग हरा न होइ ।* 
*सेवा निष्फल सब गई, फिर पछताना सोइ ॥७०॥* 
यह सारा संसार ब्रह्म से पैदा हुआ है । ऐसा श्रुति में कहा गया है, अतः सब जगत् का मूल कारण ब्रह्म है । जैसे वृक्ष की जड़ में पानी न देकर केवल पत्तों, शाखाओं पर पानी देना व्यर्थ है । ऐसे ही ब्रह्म की उपासना के विना देवताओं की उपासना पुनर्जन्मप्रद होने से व्यर्थ ही है । ब्रह्म की उपासना तो मुक्ति फल देने का कारण सफल है । स्वर्गादि लोकों के सुख को हम फल नहीं मानते क्योंकि पुण्य क्षीण होने से वे सब नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य लोक में आना पड़ता है । गीता में लिखा है कि- 
“जो जो सकामी पुरुष जिस जिस देवता को श्रद्धा से पूजना चाहते हैं, उस उस् देवभक्त की श्रद्धा को मैं उसमें स्थिर कर देता हूं । वह पुरुष उस श्रद्धा से प्रेरित होकर उस देवता के पूजन की चेष्टा करता है । उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किया हुआ फल भोग प्राप्त करता है । परन्तु अल्पबुद्धि वालों का यह फल नाशवान् है । देवताओं को पूजने वाले देवलोक को प्राप्त होते हैं और मेरे को चाहने वाले मेरे भक्त मेरे को प्राप्त होते हैं । अतः ब्रह्मोपासना ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है । अन्यथा फिर पश्चाताप करना पड़ेगा ।” 
*दादू सींचे मूल के, सब सींच्या विस्तार ।* 
*दादू सींचे मूल बिन, बाद गई बेगार ॥७१॥* 
जैसे वृक्ष की जड़ में पानी सींचने से वृक्ष के सभी डाली पत्ते आदि अवयवों में पानी पहुँच जाने से सारे वृक्ष की सिंचाई हो जाती है । मूल जड़ में पानी दिये बिना सब बेकार है । 
(क्रमशः)

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