शनिवार, 21 मार्च 2020

= २१९ =

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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग आसावरी ९ (गायन समय प्रात: ६ से ९)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२१९ - काल चेतावनी । राजमृगाँक ताल
मन रे, सोवत रैनि विहानी, 
तैं अजहूं जात न जानी ॥टेक॥
बीती रैनि बहुरि नहिं आवै, 
जीव जाग जनि सोवै ।
चारों दिशा चोर घर लागे, 
जाग देख क्या होवै॥१॥
भोर भये पछतावन लागे, 
माँहिं महल कुछ नांहीं ।
जब जाइ काल काया कर लागै, 
तब सोधै घर माँहीं ॥२॥
जाग जतन कर राखो सोई, 
तब तन तत्त न जाई ।
चेतन पहरै चेतत नांहीं, 
कह दादू समझाई ॥३॥
२१९ - २२० में काल से सचेत कर रहे हैं - अरे मन ! मोह निद्रा में सोते २ जीवन - रात्रि व्यतीत होने पर आई, तूने अब तक भी इसे नष्ट होते हुये नहीं जाना । 
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स्मरण रख, जीवन - रात्रि व्यतीत होने पर पुन: नहीं हाथ आयेगी । इसलिये हे मन ! शीघ्र जाग, सोवे मत । कामादिक चोर हृदय घर के चारों और तेरे ज्ञान धन को चुराने में लगे हैं । तू जाग करके देख तो सही क्या हो रहा है । 
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जब आयु चली जाती है और शरीर काल के हाथ में आ जाता है, तब प्राणी हृदय घर में ज्ञानादिक धन और दैवी गुण रूप बल को खोजता है । वृद्धावस्था रूप प्रात: काल होने पर जब हृदय - महल में ज्ञानादिक कुछ भी नहीं मिलते, तब पश्चात्ताप करने लगता है । 
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अत: जाग कर साधन रूप उपाय द्वारा उस ज्ञान और दैवीगुण रूप बल की रक्षा कर, तब तो तेरे शरीर से तत्व ज्ञान रूप धन नहीं जा सकेगा । हम तो तुझे बारम्बार कह कर समझाते हैं, तू चेतने के समय में सावधान नहीं हो रहा है, फिर सावधान होने से क्या बनेगा ?
(क्रमशः)

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