शनिवार, 21 मार्च 2020

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*जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै, आयु घटै तन छीजै ।*
*अंतकाल दिन आइ पहुंता, दादू ढील न कीजै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *नम्रता*
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सुनते हैं कि रावण वध के समय रामचन्द्रजी ने लक्ष्मणजी से कहा - "तुम रावण के पास जाकर नीति सीख आओ ।" वह इस विषय में बड़ा निपुण है । लक्ष्मण गये और मृत्युशय्या पर पड़े रावण के सिर की ओर खड़े होकर प्रश्न किया । रावण कुछ भी नहीं बोला । लक्ष्मण पीछे लौट आये । रामजी ने पूछा - तुमने रावण के किस अंग की ओर खड़े होकर प्रश्न किया । लक्ष्मण - सिर की ओर । रामजी - तुमने यह ठीक नहीं किया, नम्रता बिना शिक्षा नहीं मिलती, फिर जाओ और नम्रतापूर्वक पैरों की ओर खड़े होकर प्रश्न करो । 
लक्ष्मणजी ने वैसा ही किया । रावण बोला - अब तो मेरे प्राण निकल रहे हैं, इसलिये विशेष रूप से नहीं कह सकता । इतना ही कहूँ कि मनुष्य को जो कुछ करना हो वह शीघ्र कर ले । मेरा विचार था कि स्वर्ग को सीढी लगा दूं और सोने में सुगंध कर दूं इत्यादि, किन्तु मैं सोचता ही रहा कि जब चाहूँगा तभी कर दूँगा । अब प्राण निकल रहे हैं, वे कार्य रह ही गये । इतना कह वह चुप हो गया । इससे सूचित होता है कि नम्रता से ही शिक्षा का पात्र बनता है ।
शुभ शिक्षा मिलती नहीं, बिना नम्रता देख ।
कही नीति दशकंठ ने, लक्ष्मण पद दिशि पेख ॥१५९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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