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*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त Ram Gopal तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*३. नांम कौ अंग ~ १६९/१७२*
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दिवस गिण्या रैणी गिणी, घड़ी महूरत बार ।
कहि जगजीवन रांम रटि, हरि भजि उतरै पार ॥१६९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमने प्रभु प्रतीक्षा में दिन गिने रातें गिनी घड़ी मुहूर्त बार गणना करते रहे । संत कहते हैं कि इस प्रकार राम कहने से जीव भव से पार उतरते हैं।
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जग भूलै जंजाल मंहि, जुगत न आइ हाथ ।
कहि जगजीवन जागि जन, जसि करि जीवै साथ ॥१७०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संसार के मायिक जंजाल में भ्रमित होकर हम प्रभु प्राप्ति की युक्ति भूलते हैं। संत कहते हैं कि हे जीव चेत और वो प्रयत्न कर जिससे ईश्वर का साथ बना रहे।
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सुमिरण मांहीं रांमजी, सुरती सोधै सास ।
सोहं हंसा जपि लहै, सु कहि जगजीवनदास॥१७१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम स्मरण से सांसे सधी रहती है वे व्यर्थ नहीं जाती हैं । हे जीव रुपी हंस तुम सोअहम् की अनहद ध्वनि का जाप करने के अभ्यस्त बनो।
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रांम नांम अवरण बरण, तेज पुंज प्रकास ।
सब नांमन मंहिं नांम हरि, सु कहि जगजीवनदास ॥१७२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम शब्द अवर्णनीय है वह वर्णित नहीं हो सकता वह तेजोमय प्रकाश पुंज है। वह सब नामों मे श्रेष्ठ हरि नाम है।
(क्रमशः)
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