रविवार, 5 अप्रैल 2020

*३. नांम कौ अंग ~ १८९/१९२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*३. नांम कौ अंग ~ १८९/१९२*
.
रांम कहे ते ऊधरे, रसनां हरि गुन गाइ ।
कहि जगजीवन अलख निवाजै, आप क्रिपा करि आइ ॥१८९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे जीव राम कहने से, जिह्वा से जो हरि गुण गायेगा से तर जायेगा, प्रभु आप कृपालु होगें, तेरा जीवन संवर जायेगा। वे तो स्वंय तेरी रक्षा करेंगे।
.
रांम कहै ते ऊधरै, भाव भगति भजि ताहि ।
कहि जगजीवन हेत हरि, मिट जाइ चित की चाहि ॥१९०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम कहने से तर जायेगा। भाव भक्ति से भजले उन्हें, प्रेम करले तू उस रब से, तुझे सब कुछ मिलेगा उन से, तेरी चाह ही मिट जायेगी।
.
रांम कहै ते ऊधरे, रांम सरण रहै लीन ।
कहि जगजीवन हेत हरि, ज्यूं बालक बाछा२ मीन ॥१९१॥
(२. बाछा-गौ का बछड़ा)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम कहने व राम की शरण में रहने से ही उद्धार है, परमात्मा से उसी प्रकार स्नेह रखें जैसे बालक मां से, बछड़ा गाय से, व मछली जल से करती है।
.
रांम नांम हरि हेत स्यौं, कहै सुनै जे कोइ ।
कहि जगजीवन देव मुनि, बह्म बराबर होइ ॥१९२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि रामनाम जो जन प्रेम से कहते सुनते हैं वे चाहे देव हो या मुनि हो ब्रह्म सरीखे हो जाते हैं।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें