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*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*३. नांम कौ अंग ~ १९७/२००*
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रांम नांम तिहुँ लोक मैं, सरस गुफा निज थांनं ।
कहि जगजीवन खोज मन, हरि धरि दीपक ग्यांन ॥१९७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम का नाम तीनों लोकों में व्याप्त है इसे है जीवात्मा तू अपनी मन की गुफा में स्थापित कर इसे ज्ञान रुपी दीपक द्वारा मन में ही खोज कर धर ले। अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है।
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रांम रिदै रसनां बदन, रांम सबै चित मांहि ।
कहि जगजीवन रांम बिन, हरिजन बोलै नांहि ॥१९८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम हृदय में हो जिह्वा पर हो मुख में हो सारे चित विचार में होते हैं जो प्रभु के सच्चे बंदे हैं वे तो राम के बिना कुछ बोलते भी नहीं हैं।
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बेद जग्य तप दांन पुन्नि, जे फल प्रापत होइ ।
कहि जगजीवन क्रिपा हरि, अरध नांव मंहि जोइ ॥१९९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वेद यज्ञ तप दान व पुण्य से जो फल मिलता है वह ही प्रभु कृपा होने से भगवन्नाम के अर्ध नाम स्मरण से ही मिल जाता है विचारणीय है कि ईश्वर का पूरा नाम जप कितना लाभकारी है।
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नर नारायण नांम हरि, प्रिथवी पालन रांम ।
कहि जगजीवन ताहि भजि, सरि आवै सब काम ॥२००॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि है मनुष्य वे परमात्मा हरि ही पृथ्वी के पालनहार हैं। अतः उनके नाम स्मरण से तेरे सब काज पूर्ण होंगें।
(क्रमशः)
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