सोमवार, 6 अप्रैल 2020

*३. नांम कौ अंग ~ २०९/१२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*३. नांम कौ अंग ~ २०९/१२*
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नांम सुणावौ आपणां, रोम रोम ल्यौ लाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, दरसन दीजै आइ ॥२०९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी नाम दान दें हमारा रोम रोम आपकी लगन में लगा है। अतः हे राम जी अब तो आप दर्शन दें।
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जिन रुचि मांनि एक सौं, न्रिपत१ भये भजि नांम ।
कहि जगजीवन संतोष सत, यहु वित्त दीन्ह्यौ रांम ॥२१०॥
{१. न्रिपत-नृपति(राजा)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिन जन को हरि नाम में ही रुचि रही है वे ही स्मरण द्वारा अनुकरणीय राजा जैसे हो जाते हैं । उन्हें राम जी ने संतोष की ताकत धन रुप में प्रदान की है।
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जे तू मानै तो कहूँ, सबद एक सुनि सार ।
रांम नांम जिन बीसरै, जगजीवन इंहि बार ॥२११॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि, हे जीव यदि माने तो एक बात कहूँ एक ही शब्द जो प्रभु नाम का है, वो तो इस जीवन का सार है, ये वचन सदा याद रहे कभी भूलें नहीं।
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सकल करै खाली भरै, अैसा है हरि नांम ।
अठ सिधि नव निधि देखिये, जगजीवन जहां रांम ॥२१२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि ईश्वर सब कुछ पूर्ण करते हैं वे रिक्तता को भी परिपूर्ण करते हैं। जहाँ प्रभु का नाम है वहां आठ सिद्धि व नो निधि रहती है।
(क्रमशः)

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