गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

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*दादू रचि मचि लागे नाम सौं, राते माते होइ ।*
*देखेंगे दीदार को, सुख पावेंगे सोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *कीर्तन भक्ति*
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एक मुगल ने सुना कि 'गीत गोविन्द' के गाने वाले के पीछे पीछे भगवान् चलते हैं, तब उसने भी 'गीत गोविन्द' गाना आरंभ किया । एक दिन वह घोड़े पर चढकर 'गीत-गोविन्द' गाता जा रहा था । धोड़ा अति वेग से दौड़ रहा था । मुगल पीछे देखता जाता था कि भगवान आते हैं या नहीं । भावावेश में सुधि नहीं रहने के कारण धोड़े को नहीं रोक सका। इससे धोड़ा मूर्च्छित होकर जा पड़ा, मुगल भी गिर पड़ा पुस्तक भी हाथ से छूट कर दूर जा पड़ी । तब भगवान् ने तत्काल पुस्तक उठाकर मुगल के हाथ में देते हुए उसे उठाकर कहा - 'ले फिर गा' मुगल बोला - 'मैंने सुना था कि 'गीत-गोविन्द' गाने वाले के पीछे पीछे आप चलते हैं किंतु मैंने तो कई बार देखा आप दिखाई तो नहीं दिये ।' भगवान् - 'दिखता कैसे मैं तो तेरी पीठ पर रहता था जब तू पीछे देखता तब मैं तेरे पीछे की ओर आ जाता था, इससे तुझे नहीं दिखता था । इससे ज्ञात होता है कि संकीर्तनकर्ता की गति के समान ही भगवान भी उसके पीछे दौड़ते हैं ।
कीर्तनकर्ता के हि सम, दौड़त हरि भी आप ।
लखा मुगल ने नैन से, यह कीर्तन सु प्रताप ॥३७॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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