शनिवार, 9 मई 2020

= *संयम कसौटी का अंग ११६(५७/५९)* =

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*मन ताजी चेतन चढै, ल्यौ की करै लगाम ।*
*शब्द गुरु का ताजणा, कोई पहुँचै साधु सुजान ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*संयम कसौटी का अंग ११६*
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रज्जब रोग असाध्य को, औषधि कसणी देत ।
जैसे पृष्ठ१ सु पवंग२ के, केश कृष्ण३ ह्वै श्वेत ॥५७॥
जैसे घोड़े२ की पीठ१ के काले३ केश जीन की रगड़ रूप कष्ट से श्वेत हो जाते हैं, वैसे ही जन्मादिक असाध्य रोग को मिटाने के लिये गुरु जन साधन रूप कष्ट देते हैं ।
पंच रँग रोम पवंग परि, संकट श्वेत अनूप ।
रज्जब पलटै प्राण यूं, पीड़ा पारस रूप ॥५८॥
घोड़े पर पांच रंग के केश होते हैं किन्तु जीन की रगड़ रूप संकट से पीठ के केश अनुपम श्वेत हो जाते हैं । इसी प्रकार साधन संकट से प्राणी का मन बदलता रहता है, अत: साधन संकट पारस रूप है ।
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संकट स्वल्प१ शरीर लग, दुर्मति दग्धै देह ।
मन उनमन२ ले राखिबा, कठिन कसौटी येह ॥५९॥
स्थूल शरीर तक के दु:ख तो बहुत थोड़े१ हैं, किन्तु दुर्बुद्धि तो सूक्षम देह तक को जलाती है अत: मन के विषयों से उठा कर समाधि२ में रखना चाहिये यही कठिन कसौटी है ।
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित संयम कसौटी का अंग ११६ समाप्तः ॥सा. ३५७३॥
(क्रमशः)

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