शुक्रवार, 8 मई 2020

= *संयम कसौटी का अंग ११६(५३/५६)* =

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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू यहु मन बरजि बावरे, घट में राखि घेरि ।*
*मन हस्ती माता बहै, अंकुश दे दे फेरि ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*संयम कसौटी का अंग ११६*
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कूट्यों चित चावल भये, बिन कूट्यों सब शाल१ ।
रज्जब रज सबकी गई, इस कूटण के ख्याल ॥५३॥
कूटने से ही चावल होते हैं, बिना कूटे तो सब शालि१ ही रहते हैं । वैसे ही प्राणियों के चित साधन द्वारा मारने से ही श्रेष्ठ होते हैं । साधन द्वारा मारने का ध्यान रखने से सभी पाप रूप रज चली गयी है ।
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बाजीगर सौं क्यों मिलै, मन मरकट बिन मार ।
जन रज्जब खेल तबै, जब मारैं बारम्बार ॥५४॥
बिना मार वानर बाजीगर को कब मिलता है ? जब बारम्बार बाजीगर मारता है तब वह खेल खेलता है । वैसे ही मन को साधना द्वारा बारम्बार मारा जाता है तब वह भगवत् स्वरूप मे लय होता है ।
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मन मैगल१ मारे बिना, कहो मररि२ क्यों जाय ।
रज्जब मिले महावतहिं, जब हि मार बहु खाय ॥५५॥
कहो ! मन रूप मस्त हाथी१ को मारे बिना उसकी बुरी टेव२ कैसे जायगी ? जब गुरु रूप महावत मिलता है तब बहुत-सी साधन रूप मार खा कर ठीक होता है ।
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रज्जब सूता पांव पल१, पीटे निद्रा नाश ।
तो मन सूता युगन का, सो क्यों जागे बिन त्रास ॥५६॥
थोड़ी१ देर सोने वाला पैर भी पीटे बिना नहीं जागता, तब मन तो अनेक युगों का अज्ञान निद्रा में सूता है सो बिना त्रास दिये कैसे जागेगा ।
(क्रमशः)

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