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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग टोडी(तोडी) १६ (गायन समय दिन ६ से १२)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२८४ - नाम समता । उत्सव ताल
माधइयो - माधइयो मीठौ री माइ,
माहवो - माहवो भेटियो आइ ॥टेक॥
कान्हइयो - कान्हइयो करताँ जाइ,
केशवो - केशवो केशवो धाइ ॥१॥
भूधरो - भूधरो भूधरो भाइ,
रमैयो - रमैयो रह्यो समाइ ॥२॥
नरहरि - नरहरि नरहरि राइ,
गोविन्दो - गोविन्दो दादू गाइ ॥३॥
भगवद् नामों में साम्यता दिखा रहे हैं, हे भाई ! माधव२ करना मुझे मधुर लगता है । माहवो२(गुजराती नाम) करने से वे प्रभु आकर मुझ से मिले हैं ।
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कृष्ण२ करते ही मेरा समय जाता है । केशव२ करने से केशव दौड़कर आते हैं ।
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भूधर२ करना भूधर प्रभु को प्रिय लगता है । हम रमैया२ करते हुये उसी में समा रहे हैं ।
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हम नरहरि२ करते रहते हैं, नरहरि सबका राजा है । गोविन्द२ गाते रहते हैं । इस प्रकार सभी भगवन्नाम हमको समान भाव से प्रिय लगते हैं ।
(क्रमशः)
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