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*ज्यों राखै त्यों रहेंगे, मेरा क्या सारा ।*
*हुक्मी सेवक राम का, बन्दा बेचारा ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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परिच्छेद २०
*भक्तों के प्रति उपदेश*
*बाबूराम आदि के साथ ‘स्वाधीन इच्छा’ के सम्बन्ध में वार्तालाप ।*
*श्री तोतापुरी का आत्महत्या का संकल्प*
श्रीरामकृष्ण तीसरे प्रहर के बाद दक्षिणेश्वर मन्दिर के अपने कमरे के पश्चिमवाले बरामदे में वार्तालाप कर रहे हैं । साथ बाबूराम, मास्टर, रामदयाल आदि हैं । दिसम्बर १८८२ ई. । बाबूराम, रामदयाल तथा मास्टर आज रात को यहीं रहेंगे । बड़े दिनों की छुट्टी हुई है । मास्टर कल भी रहेंगे । बाबूराम नये नये आये हैं ।
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श्रीरामकृष्ण(भक्तों के प्रति)- “ईश्वर सब कुछ कर रहे हैं, यह ज्ञान होने पर मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है । केशव सेन शम्भु मल्लिक के साथ आया था । मैंने उससे कहा, वृक्ष के पत्ते तक ईश्वर की इच्छा बिना नहीं हिलते । ‘स्वाधीन इच्छा’ है कहाँ? सभी ईश्वर के अधीन हैं । नंगा१ उतने बड़े ज्ञानी थे जी, वे भी पानी में डूबने गए थे ! यहाँ पर ग्यारह महीने रहे । पेट की पीड़ा हुई, रोग की यन्त्रणा से घबड़ाकर गंगा में डूबने गए थे । घाट के पास काफी दूर तक जल कम था । जितना ही आगे बढ़ते हैं, घुटनेभर से अधिक जल नहीं मिलता । तब उन्होंने समझा; समझकर लौट आए । एक बार अत्यन्त अधिक बीमारी के कारण मैं बहुत ही जिद्दी हो गया था । गले में छुरी लगाने चला था ! इसलिए कहता हूँ, ‘माँ, मैं यन्त्र हूँ, तुम यंत्री; मैं रथ हूँ, तुम रथी; जैसा चलाती हो वैसा चलता हूँ, जैसा कराती हो वैसा ही करता हूँ’ ।” {१.श्री तोतापुरी(श्रीरामकृष्णदेव के वेदान्त-साधना के गुरु); नागा, सम्प्रदाय के होने कारण श्रीरामकृष्ण उन्हें ‘नंगा’ कहते थे ।}
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श्रीरामकृष्ण के कमरे में गाना हो रहा है । भक्तगण गाना गा रहे हैं; उसका भावार्थ इस प्रकार है -
(१)“हे कमलापति, यदि तुम हृदयरूपी वृन्दावन में निवास करो तो हे भक्तिप्रिय, मेरी भक्ति सती राधा बनेगी । मुक्ति की मेरी कामना गोपनारी बनेगी । देह नन्द की नगरी बनेगा, और प्रीति माँ यशोदा बन जाएगी । हे जनार्दन, मेरे पापसमूहरूपी गोवर्धन को धारण करो । इसी समय काम आदि कंस के छः चरों को विनष्ट करो । कृपा की बंसरी बजाते हुए मेरे मनरूपी गाय को वशीभूत कर मेरे हृदयरूपी चरागाह में निवास करो । मेरी इस कामना की पूर्ति करो, यही प्रार्थना है । इस समय मेरे प्रेमरूपी यमुना के तट पर आशारूपी वट के नीचे कृपा करके प्रकट होकर निवास करो । यदि कहो कि गोपालों के प्रेम में बन्दी होकर ब्रजधाम में रहता हूँ, तो यह अज्ञानी ‘दाशरथि’ तुम्हारा गोपाल, तुम्हारा दास बनेगा ।”
(२) “हे मेरे प्राणरूपी पिंजरे के पक्षी, गाओ ना ब्रह्मरुपी कल्पतरु पर बैठकर, हे पक्षी, तुम प्रभु के गुण गाओ न । और साथ ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-रूपी पके फलों को खाओ न ।”
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(३) नन्दनबागान के श्रीनाथ मित्र अपने मित्रों के साथ आये हैं । श्रीरामकृष्ण उन्हें देखकर कहते हैं, “यह देखो, इनकी आँखों में से भीतर का सब कुछ दिखायी पड़ रहा है, खिड़की के काँच में से जिस प्रकार कमरे के भीतर की सभी चीजें देखी जाती हैं ।’ श्रीनाथ, यज्ञनाथ ये लोग नन्दनबागान के ब्राह्मपरिवार के हैं । इनके मकान पर प्रतिवर्ष ब्राह्मसमाज का उत्सव होता था । बाद में श्रीरामकृष्ण उत्सव देखने गए थे ।
सायंकाल को मन्दिर में आरती होने लगी । कमरे में छोटे तखत पर बैठकर श्रीरामकृष्ण ईश्वर-चिन्तन कर रहे हैं । धीरे धीरे भावमग्न हो गए । भाव शान्त होने पर कहते हैं, “माँ, उसे भी खींच लो । वह इतने दीन भाव से रहता है, तुम्हारे पास आना-जाना कर रहा है ।”
श्रीरामकृष्ण भाव में - क्या बाबूराम की बात कह रहे हैं ?
बाबूराम, मास्टर, रामदयाल आदि बैठे हैं । रात के आठ-नौ बजे का समय होगा । श्रीरामकृष्ण समाधि-तत्त्व समझा रहे हैं । जड़ समाधि, चेतन समाधि, स्थित समाधि, उन्मना समाधि ।
(क्रमशः)
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