शनिवार, 9 मई 2020

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*साहिब जी की आत्मा, दीजे सुख संतोंष ।*
*दादू दूजा को नहीं, चौदह तीनों लोक ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भक्त*
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मैनपुरी जिले के दड़िया मई गांव के दादूपंथी भक्त संत रामदास ने अपने शिष्य लक्ष्मणदासजी को बाजरे के खेत की रक्षा का काम दिया था । खेत पक गया तब उसे चिड़ियें खाने लगी । यह देख कर लक्ष्मणदास बोलने लगे - 
'रामजी की चिड़ियें, रामजी का खेत ।
खाओ चिड़ियों हर्ष सहेत ।'
सब बाजरा चिड़ियें खा गई । एक दिन उनके गुरुजी खेत को देखने आये और सिट्टे खाली देखकर बोले - 'इसमें सौं मन बाजरा होता । तूने रक्षा नहीं की । तू तो नारी होता तो ही अच्छा था । लक्ष्मणदास - गुरुजी ! आप सौं मन बाजरा इस खेत के सिट्टों मे से तोल लेना । बाकि बचे सो धर्मार्थ देना होगा । फिर तैयार होने पर जब तोलने लगे तब सौ मन तुल जाने पर लक्ष्मणदास ने रोक दिया और कहा - 'अब न तोलें बचा है सो भगवान का है ।' यह कह कर उसे धर्मार्थ बांट दिया और गुरु का वचन सत्य करने के लिये नारी का भेष बना लिया तथा नरवर गांव में जाकर भक्ति का प्रचार किया । उनके शिष्य भी स्त्री का ही भेष रखते थे । उनकी समाधि पर जाने वालों की कामना अब भी भावना के अनुसार पूर्ण होती है । इससे सूचित होता है कि भक्त सभी वस्तुऐं भगवान की ही मानते है ।
सभी वस्तु भगवान की, भक्त लखें मन मांहि ।
चिड़ियें खाते बाजरा, लक्ष्मण रोका नांहि ॥३६७॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^

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