बुधवार, 20 मई 2020

= २७९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷 
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग टोडी(तोडी) १६ (गायन समय दिन ६ से १२)* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
.
२७९ - त्रिताल
काहे रे बक मूल गमावै, 
राम के नाम भले सचु१ पावे ॥टेक॥
वाद विवाद न कीजे लोई२, 
वाद विवाद न हरि रस होई ॥१॥
मैं तैं मेरी मानै नांहीं, 
मैं तैं मेट मिले हरि माँहीं ॥२॥
हार जीत सौं हरि रस जाई, 
समझ देख मेरे मन भाई ॥३॥
मूल न छाड़ी दादू बौरे, 
जनि१ भूलै तूँ बकबे औरे ॥४॥
अरे लोगो१ ! कोई व्यर्थ बकवाद करके अपना श्वास रूप मूल धन क्यों खोवे, सुख तो भली प्रकार राम - नाम चिन्तन से ही प्राप्त होता है । 
.
अत: हे लोगो ! वाद - विवाद नहीं करना चाहिए । वाद - विवाद से हरि - भक्ति - रस प्राप्त नहीं होता । 
.
मैं, तू इत्यादिक भेद - ज्ञान को भगवान् अच्छा नहीं मानते, सँत - जन "मैं, तू" रूप भेद बुद्धि नष्ट कर के ही हरि - स्वरूप में मिलते हैं । 
.
भाई ! तुम भी अपने मन में समझ कर देख लो, हार जीत का प्रयत्न करने से हरि भक्ति - रस हृदय से चला जाता है । 
.
हे विद्या के गर्व से उन्मत्त ! तू भगवद् भिन्न बातों के बकने में ही प्रभु को मत१ भूल, अपने मूल स्वरूप परब्रह्म का चिन्तन मत छोड़ ।
यह पद शास्त्रार्थ में प्रवृत्त सांभर के पँडित को कहा था ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें