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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग टोडी(तोडी) १६ (गायन समय दिन ६ से १२)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२७९ - त्रिताल
काहे रे बक मूल गमावै,
राम के नाम भले सचु१ पावे ॥टेक॥
वाद विवाद न कीजे लोई२,
वाद विवाद न हरि रस होई ॥१॥
मैं तैं मेरी मानै नांहीं,
मैं तैं मेट मिले हरि माँहीं ॥२॥
हार जीत सौं हरि रस जाई,
समझ देख मेरे मन भाई ॥३॥
मूल न छाड़ी दादू बौरे,
जनि१ भूलै तूँ बकबे औरे ॥४॥
अरे लोगो१ ! कोई व्यर्थ बकवाद करके अपना श्वास रूप मूल धन क्यों खोवे, सुख तो भली प्रकार राम - नाम चिन्तन से ही प्राप्त होता है ।
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अत: हे लोगो ! वाद - विवाद नहीं करना चाहिए । वाद - विवाद से हरि - भक्ति - रस प्राप्त नहीं होता ।
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मैं, तू इत्यादिक भेद - ज्ञान को भगवान् अच्छा नहीं मानते, सँत - जन "मैं, तू" रूप भेद बुद्धि नष्ट कर के ही हरि - स्वरूप में मिलते हैं ।
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भाई ! तुम भी अपने मन में समझ कर देख लो, हार जीत का प्रयत्न करने से हरि भक्ति - रस हृदय से चला जाता है ।
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हे विद्या के गर्व से उन्मत्त ! तू भगवद् भिन्न बातों के बकने में ही प्रभु को मत१ भूल, अपने मूल स्वरूप परब्रह्म का चिन्तन मत छोड़ ।
यह पद शास्त्रार्थ में प्रवृत्त सांभर के पँडित को कहा था ।
(क्रमशः)
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