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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग टोडी(तोडी) १६ (गायन समय दिन ६ से १२)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२८१ - साधु प्रति उपदेश । ललित ताल
निर्पख रहणा, राम राम कहणा,
काम क्रोध में देह न दहणा ॥टेक॥
जेणें मारग सँसार जाइला,
तेणें प्राणी आप बहाइला ॥१॥
जे जे करणी जगत करीला,
सो करणी सँत दूर धरीला ॥२॥
जेणें पँथैं लोक राता,
तेणें पँथैं साधु न जाता ॥३॥
राम राम दादू ऐसे कहिये,
राम रमत रामहि मिल रहिये ॥४॥
साधक सँतों को उपदेश कर रहे हैं, साधक सँतों को निर्पक्ष रहते हुये राम - राम उच्चारण करते रहना चाहिये । काम, क्रोधादिक से शरीर को नहीं जलाना चाहिये ।
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जिस मार्ग में सँसारी प्राणी जाते हैं, उसमें जाकर साधक प्राणी अपने को सँसार - प्रवाह में ही बहाता है,
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अत: जो२ अनुचित कर्म जगत के प्राणी करते हैं, उन कर्मों को सँत जन दूर ही से त्याग देते हैं
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और जिस मार्ग में सँसारी लोग अनुरक्त हैं, उस भोग - राग रूप पँथ में सँत नहीं जाते ।
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साधक सँतों को इस प्रकार राम२ करना चाहिये कि - राम से चिन्तन रूप आनन्द लेते२ राम में ही एक होकर रहें ।
(क्रमशः)
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