शुक्रवार, 8 मई 2020

*ईश्वर-दर्शन उनकी कृपा बिना नहीं होता*

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*जे जन आपा मेट कर, रहैं राम ल्यौ लाइ ।*
*दादू सब ही देखतां, साहिब सौं मिल जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ जीवत मृतक का अंग)*
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*ईश्वर-दर्शन उनकी कृपा बिना नहीं होता* 
विजय- महाराज, क्या किया जाय जो ईश्वर-दर्शन हो ।
श्रीरामकृष्ण- चित्तशुद्धि के बिना ईश्वर के दर्शन नहीं होते । कामिनी-कांचन में पड़कर मन मलिन हो गया है, उसमें जंग लग गया है । सुई में कीच लग जाने से उसे चुम्बक नहीं खींच सकता, मिट्टी साफ कर देने ही से चुम्बक खींचता है । मन का मैल नेत्रजल से धोया जा सकता है । ‘हे ईश्वर, अब ऐसा काम न करूँगा’ यह कहकर यदि कोई अनुताप करता हुआ रोये तो मैल धुल जाता है । तब ईश्वररूपी चुम्बक सुई को खींच लेता है । तब समाधि होती है, ईश्वर के दर्शन होते हैं ।
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“परन्तु चेष्टा चाहे जितनी करो, बिना उनकी कृपा के कुछ नहीं होता । उनकी कृपा बिना उनके दर्शन नहीं मिलते । और कृपा भी क्या सहज ही होती है ? अहंकार का सम्पूर्ण त्याग कर देना चाहिए । मैं कर्ता हूँ, इस ज्ञान के रहते ईश्वर-दर्शन नहीं होते । भण्डार में अगर कोई हो, और तब घर के मालिक से अगर कोई कहें कि आप खुद चलकर चीजें निकाल दीजिए, तो वह यही कहता है, है तो वहाँ एक आदमी, फिर मैं क्यों जाऊँ ?’ जो खुद कर्ता बन बैठा है, उसके हृदय में ईश्वर सहज ही नहीं आते ।
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“कृपा होने से दर्शन होते हैं । वे ज्ञानसुर्य हैं । उनकी एक ही किरण से संसार में यह ज्ञानालोक फैला हुआ है । उसी से हम एक-दूसरे को पहचानते हैं और संसार में कितनी ही तरह की विद्याएँ सीखते हैं । अपना प्रकाश यदि वे एक बार अपने मुँह के सामने रखें तो दर्शन हो जाएँ । सार्जण्ट रात को अँधेरे में हाथ में लालटेन लेकर घूमता है, पर उसका मुँह कोई नहीं देख पाता । पर उसी लालटेन के उजाले में वह सब को देखता है और आपस में अभी एक दूसरे का मुँह देखते हैं ।
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“यदि कोई सार्जण्ट को देखना चाहे तो उससे विनती करे, कहें- ‘साहब, जरा लालटेन अपने मुँह के सामने लगाइए; आपको एक नजर देख लूँ ।’
“ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि भगवन्, एक बार कृपा करके आप अपना ज्ञानालोक अपने श्रीमुख पर धारण कीजिए, मैं आपके दर्शन करूँगा । 
“घर में यदि दीपक न जले तो वह दारिद्र का चिन्ह है । हृदय में ज्ञान का दीपक जलाना चाहिए । ‘हृदय-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाकर ब्रह्ममयी का श्रीमुख देखो ।’
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विजय अपने साथ दवा भी लाए हैं । श्रीरामकृष्ण के सामने पीएँगे । दवा पानी मिलाकर पी जाती है । श्रीरामकृष्ण ने पानी मँगवाया । श्रीरामकृष्ण अहेतुक कृपासिन्धु हैं; विजय किराये की गाड़ी या नाव द्वारा आने में असमर्थ हैं, इसलिए कभी कभी वे खुद आदमी भेजकर उन्हें बुला लेते हैं । इस बार बलराम को भेजा था । किराया बलराम देंगे । विजय बलराम के साथ आए हैं । शाम के समय विजय, नवकुमार और उनके दूसरे साथी बलराम की नाव पर चढ़े । बलराम उन्हें बागबाजार के घाट पर उतार देंगे । मास्टर भी साथ हो गए ।
नाव बागबाजार के अन्नपूर्णाघाट पर लगायी गयी । जब ये लोग उतरकर बागबाजार में बलराम के मकान के निकट पहुँचे तब चाँदनी फैलने लगी थी । शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है । ठण्डी का मौसम है, थोड़ी थोड़ी ठण्डी लग रही है ।
हृदय में श्रीरामकृष्ण की आनन्दमयी मूर्ति का चिन्तन तथा उनके अमृतोपम उपदेशों का मनन करते हुए विजय, बलराम, मास्टर आदि अपने अपने घर पहुँचे ।
(क्रमशः)

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