मंगलवार, 9 जून 2020

*गृहस्थ और कर्मयोग*

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*दादू दीया है भला, दीया करौ सब कोइ ।* 
*घर में धर्‍या न पाइये, जे कर दीया न होइ ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)* 
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* 
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ 
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(२) 
*गृहस्थ और कर्मयोग* 
मन्दिर में भवतारिणी, राधाकान्त और द्वादश शिवों की पूजा समाप्त हो गयी । अब उनकी भोगारती के बाजे बज रहे हैं । चैत का महीना, दोपहर का समय है । अभी अभी ज्वार का चढ़ना आरम्भ हुआ है । दक्षिण की ओर से बड़े जोरों की हवा चल रही है । पूत सलिला भागीरथी अभी अभी उत्तरवाहिनी हुई हैं । श्रीरामकृष्ण भोजन के बाद कमरे में विश्राम कर रहे हैं । 
राखाल बसीरहाट में रहते हैं । वहाँ गर्मी के दिनों में पानी के अभाव से लोगों को बड़ा कष्ट होता है । 
श्रीरामकृष्ण(मणिलाल से)- देखो, राखाल कहता था, उसके देश में लोगों को पानी बिना बड़ा कष्ट होता है । तुम वहाँ एक तालाब क्यों नहीं खुदवा देते? इससे लोगों का कितना उपकार होगा ! (हँसते हुए) तुम्हारे पास तो बहुत रूपये हैं, इतने रूपये रखकर क्या करोगे? वैसे सुना है, तेली लोग बड़े हिसाबी होते हैं । (श्रीरामकृष्ण के साथ दूसरे भक्त भी हँस पड़े) । 
मणिलाल कलकत्ते की सिंदूरियापट्ठी में रहते हैं । सिंदूरियापट्ठी के ब्राह्मसमाज का अधिवेशन उन्हीं के यहाँ होता है । ब्राह्मसमाज के वार्षिक उत्सव में वे बहुत से लोगों को आमन्त्रित करते हैं । श्रीरामकृष्ण को भी आमन्त्रण देते हैं । वराहनगर में मणिलाल का एक बगीचा है । वहाँ वे बहुधा अकेले आया करते हैं और उस समय श्रीरामकृष्ण के दर्शन कर जाया करते हैं । वे सचमुच बड़े हिसाबी हैं । 
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रास्ते भर के लिए किराये की गाड़ी नहीं करते । पहले ट्राम में चढ़कर शोभाबाजार तक आते हैं; फिर वहाँ से कुछ आदमियों के साथ हिस्से में किराया देकर घोड़ागाड़ी पर चढ़कर वराहनगर आते हैं । परन्तु रूपये की कमी नहीं है । कुछ साल बाद गरीब विद्यार्थियों के लिए उन्होंने एक ही किश्त में पचीस हजार रुपये देने का बन्दोबस्त कर दिया था । 
मणिलाल चुप बैठे रहे । कुछ देर इधर उधर की बातें करके बोले, “महाराज ! आप तालाब खुदवाने की बात कह रहे थे । उतना कहने ही से काम हो जाता, ऊपर से तेली-तमोली कहने की क्या जरूरत थी ?” श्रीरामकृष्ण, कोई कोई भक्त मुख दबाकर हँस रहे हैं । मुस्करा भी रहे हैं ।
(क्रमशः)

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