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*टगा टगी जीवन मरण, ब्रह्म बराबरि होइ ।*
*परगट खेलै पीव सौं, दादू बिरला कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु*, *परा भक्ति*
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मृग वारि(मृग तृष्णा का जल) और सविता(सूर्य) की किरण एक ही है किन्तु फिर भी भिन्न भिन्न से भासते हैं । वैसे ही परा भक्ति में भक्ति में भक्त और भगवान एक होकर भी भिन्न से दीखते हैं किन्तु भिन्न नहीं रहते ।
एक हुये भी भिन्न से, भासत जन भगवान ।
परामाँहिं मृगवारि अरु, सविता किरण समान ॥३४५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^
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