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*दादू पूरण ब्रह्म विचारले, द्वैत भाव कर दूर ।*
*सब घट साहिब देखिये, राम रह्या भरपूर ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*सिद्धों की दृष्टि में ‘ईश्वर ही कर्ता है’*
श्रीरामकृष्ण- हाँ, यह एक तरह की बात है । - ऐहिक इच्छाएँ रखनेवालों के लिए । परन्तु जिनमें चैतन्य का उदय हुआ है, जिन्हें यह बोध हो गया है कि ईश्वर ही सत्य है, और सब असत्, अनित्य, उनका भाव एक दूसरी तरह का होता है । वे जानते हैं कि ईश्वर ही एकमात्र कर्ता हैं और सब अकर्ता हैं । उनके पैर बेताल नहीं पड़ते । उन्हें हिसाब-किताब करके पाप का त्याग नहीं करना पड़ता । ईश्वर पर उनका इतना अनुराग होता है कि जो कर्म वे करते हैं, वही सत्कर्म हो जाता है ! परन्तु वे जानते हैं कि इन सब कर्मों का कर्ता मैं नहीं हूँ; मैं तो उनका दास हूँ । मैं यन्त्र हूँ, वे यंत्री हैं । वे जैसा कराते हैं, वैसा ही करता हूँ; जैसा कहलाते हैं, वैसा ही कहता हूँ; जैसा चलाते हैं, वैसा ही चलता हूँ ।
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“जिन्हें चैतन्य हुआ है, वे पापपुण्य के पार चले गए हैं । वे देखते हैं, ईश्वर ही सब कुछ कर रहे हैं । कहीं एक मठ था । मठ के साधु-महात्मा रोज भिक्षा के लिए जाया करते थे । एक दिन एक साधु ने देखा कि एक जमींदार किसी किसान को पीट रहा है । साधु बड़े दयालु थे । बीच में पड़कर उन्होंने जमींदार को मारने से मना किया । जमींदार उस समय मारे गुस्से के आगबबूला हो रहा था । उसने दिल का सारा बुखार महात्माजी पर ही उतारा; उन्हें इतना पीटा कि वे बड़े देर तक बेहोश पड़े रहे ।
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किसी ने मठ में जाकर खबर दी कि तुम्हारे किसी साधु को जमींदार ने बहुत मारा । मठ के साधु दौड़ते हुए आए और देखा तो वे साधु बेहोश पड़े हैं । तब उन्होंने उन्हें उठाकर मठ में लाया और एक कमरे में सुला दिया । साधु बेहोश थे, चारों ओर से लोग उन्हें घेरे दुःखित भाव से बैठे थे । कोई कोई पंखा झल रहे थे । एक ने कहा ‘मुँह में जरा दूध डालकर तो देखो ।’ मुँह में दूध डालने पर उन्हें होश आया । आँखें खोलकर ताकने लगे । किसी ने कहा, ‘अब यह देखना चाहिए कि इन्हें इतना ज्ञान है या नहीं कि आदमी पहचान सकें ।’ यह कहकर उसने ऊँची आवाज लगाकर पूछा ‘क्यों महाराज, आपको दूध कौन पिला रहा है?’ साधु ने धीमे स्वर में कहा, ‘भाई ! जिसने मुझे मारा था वही अब दूध पिला रहा है ।’
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“ईश्वर को बिना जाने ऐसी अवस्था नहीं होती ।”
मणिलाल- जी हाँ, पर आपने यह जो कहा यह ऊँची अवस्था की बात है । भास्करानन्द के साथ ऐसी ही कुछ बातें हुई थीं ।
श्रीरामकृष्ण- वे किसी मकान में रहते हैं ?
मणिलाल- जी हाँ, एक आदमी के मकान में रहते हैं ।
श्रीरामकृष्ण- उम्र क्या है ?
मणिलाल- पचपन की होगी ।
श्रीरामकृष्ण- कुछ और भी बातें हुई ?
मणिलाल- मैंने पूछा, भक्ति कैसे हो ? उन्होंने बतलाया, नाम जपो, राम राम कहो ।
श्रीरामकृष्ण- यह बड़ी अच्छी बात हैं ।
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