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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
(श्री दादूवाणी ~ १३. साच का अंग)
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*॥ समझ सुजानता-सब जीवों में ज्ञान ॥*
*दादू कासौं कहि समझाइये, सब कोई चतुर सुजान ।*
*कीड़ी कुंजर आदि दे, नाहिंन कोई अजान हैं ॥८९॥*
इस कलिकाल में सभी प्राणी अपने को पण्डित समझते हैं । कोई भी अपने को अज्ञानी नहीं मानता अधिक क्या कहें? कीडी से लेकर हाथी पर्यन्त सभी जीव अपने व्यवहार में चतुर दीख रहे हैं और सभी अपने को विज्ञ कहते हैं अतः मैं किस प्रकार से किस को समझाऊं । किसी के भी अन्तःकरण में ज्ञान की जिज्ञासा ही नहीं होती ।
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*॥ करणी बिना कथनी ॥*
*शूकर स्वान सियाल सिंह, सर्प रहैं घट माँहि ।*
*कुंजर कीड़ी जीव सब, पांडे जाणैं नांहि ॥९०॥*
*दादू सूना घट सोधी नहीं, पंडित ब्रह्मा पूत ।*
*आगम निगम सब कथैं, घर में नाचै भूत ॥९१॥*
भक्ति ज्ञान वैराग्य शून्य अन्तःकरण वाले पण्डित अपने को वसिष्ठ के समान ज्ञानी बतलाते हैं और वेद शास्त्रों का प्रवचन भी करते हौं किन्तु उनके अन्तःकरण में तो काम क्रोध लोभ मोह भरे पड़े हैं । अतः ज्ञान के साधनों से रहित उन पंडिताभिमानी पंडितों को आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती ।
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*पढे न पावै परमगति, पढे न लंघै पार ।*
*पढे न पहुंचै प्राणियां, दादू पीड़ पुकार ॥९२॥*
केवल शास्त्रों के अध्ययन मात्र से परम गति को कोई प्राप्त नहीं कर सकता न संसार सागर को पार कर सकते हैं और न ब्रह्म में स्वरूपस्थिति हो सकती है । किन्तु जब विरह से पीडित होकर श्रद्धा भक्ति से भगवान् को प्रार्थना करेगा तब भगवान् प्रसन्न होते हैं । सर्ववेदान्तसंग्रह में लिखा है कि- श्रद्धावान् पुरुषों को ही पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति बतलाई है, दूसरों को नहीं । वेद में कहा है कि हे सौम्य यह परमार्थ तत्व अत्यन्त सूक्ष्म है वह श्रद्धा से ही प्राप्त हो सकता है, अतः श्रद्धा करो । श्रद्धा विहीन पुरुष की तो परमार्थ में प्रवृत्ति ही नहीं हो सकती प्रवृत्ति के विना साध्य की सिद्धि न होती । अतः अश्रद्धा के कारण सभी प्राणी संसार समुद्र में डूब रहे हैं ।
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*दादू निवरे नाम बिन, झूठा कथैं गियान ।*
*बैठे सिर खाली करैं, पंडित वेद पुरान ॥९३॥*
हरि नाम चिन्तन के बिना वेद शास्त्र पुराण आदि को जानने वाले विद्वान भी व्यर्थ ही शास्त्र भार को ढोते हैं । वह उनका ज्ञान केवल शिर को पीडा देने वाला ही है । अतः ज्ञान के अनुसार कर्तव्यपालन भी अवश्य होना चाहिये । अन्यथा भक्तों की दृष्टि में शास्त्र ज्ञान भी भारभूत ही है ।
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*दादू केते पुस्तक पढ़ मुये, पंडित वेद पुरान ।*
*केते ब्रह्मा कथ गये, नांहिन राम समान ॥९४॥*
इस कलिकाल में कितने ही वेदशास्त्रों के पढ़ने वाले विद्वान् मुक्ति प्राप्त किये बिना ही पढ पढ का मर गये । ब्रह्मा के समान अपने को महर्षि मानने वाले भी बिना मुक्ति के ही नष्ट हो गये । अतः सभी मुमुक्षुओं को हरि के नाम का चिन्तन करना चाहिये । तब ही उनके शास्त्रों का अध्ययन सफल होगा ।
(क्रमशः)
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