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*कामधेनु कै पटंतरे, करै काठ की गाइ ।*
*दादू दूध दूझै नहीं, मूरख देइ बहाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*साँच चाणक का अंग १२१*
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पद पावक मय१ लिख लिया, तो घर तिमिर न जाय ।
रज्जब दीपक राग को, जे न सुनावे गाय ॥६५॥
अग्नि पद और अग्नि का आकार१ चित्र में लिख लिया जाय तो भी यदि दीपक राग को गाकर न सुनाये तो घर का अंधेरा नहीं जाता । वैसे ही धारण बिना कथन मात्र से अज्ञान नहीं जाता ।
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भगवत भजन बिन झूठ सब, पिंड ब्रह्माण्ड बखान ।
रज्जब दत१ बाजी चिहर२, दे ले मिथ्या जान ॥६६॥
भगवान के भजन बिना शरीर और ब्रह्माण्ड संबन्धी व्याख्यान मिथ्या है, देना१ भी बाजीगर की बाजी के समान हल्ला२ ही है, अत: देने लेने का फल भी मिथ्या जान कर भगवत भजन ही करना चाहिये ।
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पाठों दरशै नाम सब, परि ठाँव१ न परसै२ प्राण३ ।
तब लग तत४ वित्त५ दूर है, समझै संत सुजाण६ ॥६७॥
पुस्तकों के पाठों में सभी को प्रभु के नामों का दर्शन होता है किन्तु प्राणी३ प्रभु धाम१ को नहीं प्राप्त२ होता, जब तक वृत्ति पुस्तक के पाठों मे ही लीन है तब तक परम तत्व४ रूप धन५ दूर रहता है, इस रहस्य को बुद्धिमान६ संत ही समझते हैं ।
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राग माल लिख राग न आवे, भोगल१ लिख ले राज न पावै ।
पिंगल लिखै न पिंगल उपजै, यूं शब्द सीख कहि साधु न निपजै२ ॥६८॥
रागों की नाम माला लिखने से राग गाना नहीं आता, भूगोल१ लिखने से राज्य नहीं मिलता, पिंगल का पुस्तक लिखने से हृदय में कविता करने का ज्ञान उत्पन्न नहीं होता, वैसे ही शब्दों को सीख कर कहने से साधु नहीं हो सकता२ ।
(क्रमशः)
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