मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मध्य का अंग ५५/५९

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🌷
भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
(#श्रीदादूवाणी ~ १६. मध्य का अंग)
.
*जानै बूझै साच है, सबको देखन धाइ ।*
*चाल नहीं संसार की, दादू गह्या न जाइ ॥५५॥*
रागद्वेष तथा साम्प्रदायिक धर्म के पक्षपात से रहित उन महात्माओं का मार्ग कल्याणकारक और सत्य है । ऐसा लोग जानते हैं और उनके वैराग्यादि गुणों से आकृष्ट होकर दर्शनों के लिये उनके पास भी जाते हैं । लेकिन उनके जैसा मेरा बाह्य वेश न देखकर चकित होते हैं कि “यह कैसा साधु” इसका वेश तो साधु का सा नजर नहीं आता ऐसा कहते हुए मेरे में श्रद्धा न होने से मेरे निष्पक्ष मार्ग को स्वीकार नहीं करते ।
.
*दादू पख काहू के ना मिले, निर्पख निर्मल नांव ।*
*सांई सौं सन्मुख सदा, मुक्ता सब ही ठांव ॥५६॥*
संत तो सदा ही निष्पक्ष होते हैं । किसी का भी पक्ष नहीं करते किन्तु निष्पक्ष भाव से निर्मल प्रभु के नाम का स्मरण करते हुए निर्भय होकर उपदेश देते हुए विचरण किया करते हैं ।
.
*दादू जब तैं हम निर्पख भये, सबै रिसाने लोक ।*
*सतगुरु के परसाद तैं, मेरे हर्ष न शोक ॥५७॥*
जब से हम निष्पक्ष हुए हैं । तभी से लोग मुझे नास्तिक कहते हैं । यह किसी भी धर्म को नहीं मानता । परन्तु मैं तो सद्गुरु की कृपा से हर्ष शोक से रहित निर्भय हूँ, दोष देने वाले दोष देते रहे हैं, मेरी कुछ भी हानि नहीं है ।
.
*निर्पख ह्वै कर पख गहै, नरक पड़ैगा सोइ ।*
*हम निर्पख लागे नाम सौं, कर्त्ता करै सो होइ ॥५८॥*
यदि कोई निष्पक्ष होकर भी किसी धर्म विशेष या जाति विशेषता का पक्ष स्वीकार करता है तो वह दुःखरूपी नरक में पड़ेगा । हम तो निष्पक्ष होकर हरिनाम का स्मरण करते हैं । हरि की कृपा से होने वाला है वह होता रहे ।
.
*॥ हरि भरोस ॥*
*दादू पख काहू के ना मिलैं, निष्कामी निर्पख साध ।*
*एक भरोसे राम के, खेलैं खेल अगाध ॥५९॥*
जो निष्पक्ष संत हैं, वे किसी के भी मतमतान्तर को नहीं ग्रहण करते । किन्तु निष्पक्ष होते हुए हरि का विश्वास करके हरिभजन के रस का पान करते रहते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें