बुधवार, 26 अगस्त 2020

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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*दादू करबे वाले हम नहीं, कहबे को हम शूर ।*
*कहबा हम थैं निकट है, करबा हम थैं दूर ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *आलस*
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दो आलसी मध्याहन में एक वृक्ष के नीचे सोये थे, वहां धूप आ गई । एक अन्य मनुष्य ने उन्हें धूप में सोते देखकर कहा - "अरे ! उठकर छाया में तो सो जाओ ।" तब उनमें से एक बोला - "भाई ! वह तो आलसी है तू उससे क्यों सिर खपाता है, इधर आ मेरे पैर पकड़ कर खींचकर मुझे छाया में कर जा।" इससे सूचित होता है कि आलसी भी दूसरे को आलसी मानता है ।
कहत आलसी अन्य को, यह आलसि दुख पाय ।
छाया में करजा मुझे, उससे शिर न खपाय ॥२५०॥

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