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*भाव भक्ति लै ऊपजै, सो ठाहर निज सार ।*
*तहँ दादू निधि पाइये, निरंतर निरधार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ लै का अंग)*
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*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)*
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*
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(३)
*यदु मल्लिक के मकान पर*
श्रीरामकृष्ण यदु मल्लिक के मकान पर आए । कृष्णा प्रतिपदा है । चाँदनी रात है ।
जिस कमरे में सिंहवाहिनी देवी की नित्यसेवा होती है उस कमरे में श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ उपस्थित हुए । सचन्दन पुष्पों और मालाओं द्वारा पूजित और विभूषित होकर देवी ने अपूर्व शोभा धारण की है । सामने पुजारी बैठे हुए हैं । प्रतिमा के सम्मुख दीप जल रहा है । सहचरों में से एक को श्रीरामकृष्ण ने रुपया चढ़ाकर प्रणाम करने कहा, क्योंकि देवता के दर्शन के लिए आने पर कुछ प्रणामी चढ़ानी चाहिए ।
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श्रीरामकृष्ण सिंहवाहिनी के सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं । आपके पीछे भक्तगण हाथ जोड़कर खड़े हैं । श्रीरामकृष्ण बड़ी देर तक दर्शन कर रहे हैं ।
क्या आश्चर्य है ! दर्शन करते हुए आप सहसा समाधिमग्न हो गए । पत्थर की मूर्ति की तरह निःस्तब्ध खड़े हैं । नेत्र निष्पलक हैं ।
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काफी समय के बाद आपने लम्बी साँस छोड़ी । समाधि छूटी । नशे में मस्त हुए-से कह रहे हैं - “माँ चलता हूँ !” परन्तु चल नहीं पाते – उसी प्रकार खड़े हैं ।
फिर रामलाल से कहा, “तुम वह गाना गाओ – तभी मैं ठीक होऊँगा ।”
रामलाल गाने लगे – “हे माँ हरमोहिनी, तूने संसार को भुलावे में डाल रखा है ।”
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गीत समाप्त हुआ । अब श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बैठकखाने की ओर आ रहे हैं । चलते हुए बीच बीच में कहते हैं – “माँ, मेरे हृदय में रहो, माँ ।”
यदु मल्लिक अपने लोगों के साथ बैठकखाने में बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण भावावस्था में ही हैं । आकर गा रहे हैं – (भावार्थ)- “हे माँ, तुम आनन्दमयी होते हुए मुझे निरानन्द मत करना ।”
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गीत समाप्त होने पर भावोन्मत्त होकर यदु से कहते हैं, “क्यों बाबू, क्या गाऊँ?
“माँ, आमिकि आटाशे छेले’ – यह गाना गाऊँ?” यह कहकर गाने लगे –
(भावार्थ)- “माँ, क्या मैं तेरा अठवाँसा* बालक हूँ ? तेरे आँखें तरेरने से मैं नहीं डरता । शिव जिन्हें अपने हृदयकमल पर धारण करते हैं वे तेरे आरक्त चरण मेरी सम्पदा हैं ।.......” (*आठ महीने में जन्म लेनेवाला बच्चा दुर्बल और भीरु होता है ।)
(क्रमशः)
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