रविवार, 23 अगस्त 2020

मध्य का अंग ४७/५०

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🌷
भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ १६. मध्य का अंग)
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*॥ उभै असमाव ॥*
*दादू मेरा तेरा बावरे, मैं तैं की तज बान ।*
*जिन यहु सब कुछ सिरजिया, करता ही का जान ॥४७॥*
हे अज्ञानी जीव ! जिस प्रभु ने यह जगत् बनाया है । यह जगत् उसी का है, इसमें तेरा कुछ भी नहीं है । अतः तू व्यर्थ में ही अहंता ममता क्यों कर रहा है और उस ममता से क्यों दुःखी हो रहा है? महाभारत में लिखा है कि-
यदि मानव कहीं भी किसी पदार्थ में ममता की कल्पना करता है तो वह सब कुछ ममत्व परिताप के लिये ही है । श्रीशंकराचार्यजी भी लिखा रहे हैं – कौन तेरा पुत्र व स्त्री है ? अरे ! यह संसार बड़ा विचित्र है । हे भाई ! इसी तत्व का निरन्तर विचार कर कि “तू कौन है, किसका है, कहां से आया है ?”
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*दादू करणी हिन्दू तुरक की, अपनी अपनी ठौर ।*
*दुहुं बिच मारग साधु का, यहु संतों की रह और ॥४८॥*
हिन्दू तथा मुसलमानों के कर्तव्यकर्म अपने-अपने स्थान मन्दिर या मस्जिद में ही होते हैं । वहाँ पर ही वे अपने उपास्य देव को मानते हैं । महात्माओं का मार्ग भिन्न ही होता है । वे तो उस परिपूर्ण परमात्मा को सर्वत्र भजते हैं । अतः सन्तों के मार्ग निष्पक्ष मार्ग होता है ।
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*दादू हिन्दू तुरक का, द्वै पख पंथ निवार ।*
*संगति साचे साधु की, सांई को संभार ॥४९॥*
हिन्दू मुसलमानों का जो पक्षपातपूर्ण मार्ग है, उसको त्यागकर सत्पुरुषों की संगति द्वारा साधक को हरि की भक्ति करनी चाहिये ।
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*दादू हिन्दू लागे देहुरे, मुसलमान मसीति ।*
*हम लागे एक अलेख सौं, सदा निरंतर प्रीति ॥५०॥*
हिन्दू तथा मुसलमान अपने-अपने उपास्य देव को मन्दिर मस्जिद में मान कर वहाँ पर ही अपनी-अपनी उपासना करते हैं । हम तो प्रतिक्षण प्रीति पूर्वक सर्वव्यापक इन्द्रियातीत परब्रह्म का चिन्तन करते हैं ।
(क्रमशः)

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