रविवार, 23 अगस्त 2020

*भक्तों के साथ*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷 
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷 
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷 
https://www.facebook.com/DADUVANI 
*धनि धनि साहिब तू बड़ा, कौन अनुपम रीत ।* 
*सकल लोक सिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)* 
================ 
*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* 
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ* 
परिच्छेद ४६ 
*भक्तों के साथ(१) कलकत्ते की राह पर* 
.
श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर से गाड़ी पर कलकत्ते की ओर जा रहे हैं । साथ में रामलाल और दो-एक भक्त हैं । फाटक से निकलते ही आपने देखा कि मणि हाथ में चार फजली आम लिए हुए पैदल आ रहे हैं । मणि को देखकर गाड़ी को रोकने के लिए कहा । मणि ने गाड़ी पर सिर टेककर प्रणाम किया । 
आज शनिवार, २१ जुलाई १८८३ ई., आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा है । दिन के चार बजे हैं । श्रीरामकृष्ण अधर के मकान पर जाएँगे, उसके बाद यदु मल्लिक के घर और फिर खेलात घोष के यहाँ जाएँगे । 
श्रीरामकृष्ण(मणि से हँसते हुए)- तुम भी आओ न, हम अधर के यहाँ जा रहे हैं । 
मणि- ‘जैसी आपकी आज्ञा’ कहकर गाड़ी पर बैठ गये । 
मणि- अंग्रेजी पढ़े-लिखे हैं, इसी से संस्कार नहीं मानते थे पर कुछ दिन हुए श्रीरामकृष्ण के पास यह स्वीकार कर गए थे कि अधर के संस्कार थे, इसी से वे उनकी इतनी भक्ति करते हैं । घर लौटकर विचार करने पर मास्टर ने देखा कि संस्कार के बारे में अभी तक उनको पूर्ण विश्वास नहीं हुआ । यही कहने के लिए आज श्रीरामकृष्ण से मिलने आए हैं । श्रीरामकृष्ण बातें करने लगे । 
श्रीरामकृष्ण- अच्छा, अधर को तुम कैसा समझते हो ? 
मणि- उनमें बहुत अनुराग है । 
श्रीरामकृष्ण- अधर भी तुम्हारी बड़ी प्रशंसा करता है । 
मणि- कुछ देर तक चुप रहे, फिर पूर्वजन्म के संस्कार की बात उठायी । 
*ईश्वर के कार्य समझना असम्भव है* 
मणि- मुझे ‘पूर्वजन्म’ और ‘संस्कार’ आदि पर उतना विश्वास नहीं है; क्या इससे मेरी भक्ति में कोई बाधा आएगी ? 
श्रीरामकृष्ण- ईश्वर की सृष्टि में सब कुछ हो सकता है- यह विश्वास ही पर्याप्त है । मैं जो सोचता हूँ वही सत्य है, और सब का मत मिथ्या है – ऐसा भाव मन में न आने देना बाकी ईश्वर ही समझा देंगे । 
“ईश्वर के कार्यों को मनुष्य क्या समझेगा ? उनके कार्य अनन्त हैं । इसलिए मैं इनको समझाने का थोड़ा भी प्रयत्न नहीं करता । मैंने सुन रखा है कि उनकी सृष्टि में सब कुछ हो सकता है । इसीलिए मैं इन बातों की चिन्ता न कर केवल ईश्वर ही की चिन्ता करता हूँ । हनुमान से पूछा गया था, आज कौनसी तिथि है; हनुमान ने कहा था, मैं तिथि, नक्षत्र आदि नहीं जानता, केवल एक राम की चिन्ता करता हूँ । 
“ईश्वर के कार्य क्या समझ में आ सकते हैं ? वे तो पास ही हैं – पर यह समझना कितना कठिन है ! बलराम कृष्ण को भगवान् नहीं जानते थे ।” 
मणि- जी हाँ ! जैसे आपने भीष्मदेव की बात कही थी । 
श्रीरामकृष्ण- हाँ, हाँ ! क्या कहा था, कहो तो ! 
मणि- भीष्मदेव शरशय्या पर पड़े रो रहे थे । पाण्डवों ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘भाई, यह कैसा आश्चर्य है ! पितामह इतने ज्ञानी होकर भी मृत्यु का विचार कर रो रहे हैं !’ श्रीकृष्ण ने कहा, ‘उनसे पूछो न, क्यों रोते हैं ।’ भीष्मदेव बोले, ‘मैं यह विचार कर रोता हूँ कि भगवान् के कार्य को कुछ भी न समझ सका । हे कृष्ण, तुम इन पाण्डवों के साथ साथ फिरते हो, पग पग पर इनकी रक्षा करते हो, फिर भी इनकी विपद् का अन्त नहीं !’ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें