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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“तृतीयोल्लास” १३/१५)*
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षष्ट मास मैं उतरै आई, विप्र कही राजा मन भाई ।
हुलो-हुलो अहनिसा पुकारै, पूरी चौकी समंद किनारे ॥१३॥
छ: महिने में वे लोग भारत से उतर आते हैं, इस प्रकार की बात विप्र ने राजा से कही जो राजा के मन को पसन्द आई । राजा ने आज्ञा दी कि सारी, दिन रात समुद्र तट पर चौकियों पर कौन है कौन है इस प्रकार हमला करते रहो ॥१३॥
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राति दिवस जागे अति सोई, बार बार आडे टुक होई ।
राखै राव बहुत सचेतु, ब्रांह्मन फिरे दुहाई देतू ॥१४॥
तट रक्षक पहरेदार रातदिन जागते रहे और हमला करते रहे बार-बार कभी थोड़ा आड़े हो जाते थे । राजा ने सब को बहुत सावधान रख रखा था और ब्राह्मण उनकी दुहाई देता फिर रहा था ॥१४॥
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पदम सिंध और राव धिराजू, तुपक तीर राखे सब साजू ।
बाजे ढौल जग फेरी देही, घाट बाट की खबर जू लेही ॥१५॥
पदमसिंघ और राजा धिराजू ढाल तीर तलवार आदि के साथ पूर्ण सुसज्जित रहकर और ढौल बजाकर सारे जग में राज्य में फेरी देते रहे एवं समुद्र किनारे के सारे रास्ते की पूरी खबर लेते रहे ॥१५॥
(क्रमशः)
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