🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🌷
भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ १६. मध्य का अंग)
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*न तहाँ हिन्दू देवरा, न तहाँ तुरक मसीति ।*
*दादू आपै आप है, नहीं तहाँ रह रीति ॥५१॥*
निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना में स्थान विशेष(मन्दिर मस्जिद) की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वह तो सर्वव्यापक होने से सर्वत्र ही उपलब्ध हैं । इस उपासना में कोई रीति नीति(विधि विशेष) की जरूरत नहीं होती । उपासना तो प्रेमप्रधान होती है, वह किसी विधि विशेष में नहीं बंध सकती और इस उपासना में तो ब्रह्मात्मैकत्व ज्ञान की आवश्यकता होती है, जिससे ब्रह्मसाक्षात्कार होता है । जीव ब्रह्म की एकता आत्मा अनात्मा के सम्यक् विवेचन से होता है ।
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*यहु मसीत यहु देहुरा, सतगुरु दिया दिखाइ ।*
*भीतर सेवा बन्दगी, बाहिर काहे जाइ ॥५२ ॥*
*दोनों हाथी ह्वै रहे, मिल रस पिया न जाइ ।*
*दादू आपा मेट कर, दोनों रहें समाइ ॥५३॥*
जैसे बल के अहंकार से उन्मत्त दो हाथी एक समय में एक जगह पानी नहीं पी सकता, परस्पर में युद्ध की आशंका हो सकती है । इसी तरह हिन्दू और मुसलमान भी अपने-अपने धर्म का अहंकार करते हुए एक जगह बैठकर प्रभुभक्ति नहीं कर सकते । झगड़ा होने का डर रहता है । किन्तु जाति भेद से ईश्वर में कोई भेद नहीं हो सकता, वह सबका एक ही है । यदि सभी लोग, अपने-अपने जाति के भेद त्यागकर हरि को भजे तो प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं ।
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*भयभीत भयानक ह्वै रहे, देख्या निर्पख अंग ।*
*दादू एकै ले रह्या, दूजा चढै न रंग ॥५४॥*
हमारी निर्गुण उपासना पद्धति को देखकर कितने ही भयभीत होकर चकित हो रहे हैं कि हमने तो ऐसी उपासना किसी को भी नहीं करते देखा, और न सुना । यह हिन्दू धर्म और मुसलमान धर्मों से भिन्न ही हैं, इसको हम अच्छा नहीं मानते । ऐसा कहते हैं और मेरी उपासना पद्धति में उन लोगों की श्रद्धा न होने से उसको नहीं अपनाते, प्रत्युत मेरी निन्दा करते हैं । मैं तो निन्दा से डरता नहीं और उसी निर्गुणोपासना को कर रहा हूँ, क्योंकि उनकी उपासना पद्धति मुझे अच्छी नहीं लगती । वे परस्पर में जाति धर्म को लेकर कलह करते रहते हैं ।
(क्रमशः)
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