रविवार, 30 अगस्त 2020

*श्रीरामकृष्ण का सर्वधर्मसमन्वय*

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*अपनी अपनी जाति सौं, सब को बैसैं पांति ।* 
*दादू सेवग राम का, ताके नहीं भरांति ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)* 
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*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* 
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ* 
(४) 
*खेलात घोष के मकान पर* 
श्रीरामकृष्ण खेलात घोष के मकान में प्रवेश कर रहे हैं । रात के दस बजे होंगे । मकान और बड़ा आँगन चन्द्र के प्रकाश से आलोकित हो रहा है । भीतर प्रवेश करते हुए श्रीरामकृष्ण भावाविष्ट हो गए । साथ में रामलाल, मास्टर तथा और भी एक-दो भक्त हैं । मकान बहुत बड़ा और पक्का है । दुमँजले पर पहुँचने पर बरामदे से दक्षिण की ओर बहुत लम्बा जाकर, फिर पूर्व की ओर मुडकर फिर उत्तर की ओर लम्बा रास्ता चलकर मकान के भीतरी हिस्से में पहुँचने पर ऐसा मालुम होने लगा कि मानो घर में कोई नहीं है – बड़े बड़े कमरे और सामने लम्बा बरामदा – सब खाली पड़ा है । 
श्रीरामकृष्ण को उत्तर-पूर्व ओर के एक कमरे में बैठाया गया । आप अब भी भावमग्न हैं । घर के जिन भक्त ने आपको बुला लाया है, उन्होंने आकर स्वागत किया । ये वैष्णव हैं । देह पर तिलक की छाप है और हाथ में जपमाला की गोमुखी । ये प्रौढ़ हैं । खेलात घोष के सम्बन्धी हैं । ये बीच बीच में दक्षिणेश्वर जाकर श्रीरामकृष्ण के दर्शन कर आते हैं । परन्तु किसी किसी वैष्णव का भाव अत्यन्त संकीर्ण होता है । वे शाक्तों या ज्ञानियों की बड़ी निन्दा किया करते हैं । श्रीरामकृष्ण अब वार्तालाप कर रहे हैं । 
*श्रीरामकृष्ण का सर्वधर्मसमन्वय* 
श्रीरामकृष्ण(भक्तों के प्रति)-मेरा धर्म ठीक है और दूसरों का गलत – यह मत अच्छा नहीं । ईश्वर एक ही हैं, दो नहीं । उन्हीं को भिन्न भिन्न व्यक्ति भिन्न भिन्न नामों से पुकारते हैं । कोई कहता है गाड तो कोई अल्लाह, कोई कहता है कृष्ण, कोई शिव तो कोई ब्रह्म । जैसे तालाब में जल है । एक घाट पर लोग उसे कहते हैं, ‘जल’, दूसरे घाट पर कहते हैं ‘वाटर’, और तीसरे घाट पर ‘पानी’ । हिन्दू कहते हैं, ‘जल’, ख्रिश्चन कहते हैं ‘वाटर’ और मुसलमान ‘पानी’ – परन्तु वस्तु एक ही है । मत तो पथ हैं । 
एक-एक धर्ममत एक-एक पथ है जो ईश्वर की और ले जाता है । जैसे नदियाँ नाना दिशाओं से आकर सागर में मिल जाती हैं । 
“वेद, पुराण, तन्त्र – सब का प्रतिपाद्य विषय वही एक सच्चिदानन्द है । वेदों में सच्चिदानन्द ब्रह्म, पुराणों में सच्चिदानन्द कृष्ण, तन्त्रों में सच्चिदानन्द शिव कहा है । सच्चिदानन्द ब्रह्म, सच्चिदानन्द कृष्ण, सच्चिदानन्द शिव – एक ही हैं ।” सब चुप हैं । 
(क्रमशः)

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