रविवार, 23 अगस्त 2020

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*हिरदै राम सँभाल ले, मन राखै विश्वास ।*
*दादू समर्थ सांइयां, सब की पूरै आस ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *कर्म*
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एक मनुष्य धाणी चबा रहा था। फक्की लगाते समय एक दाना उसकी नाक में चला गया, बहुत प्रयन्त किया पर नहीं निकला। उसके सामने ही एक चबूतरे पर बाला, मरदान के सहित गुरु नानक बैठे थे, वे हंस पड़े । बाला ने पूछा - "भगवन् ! आप हंसे कैसे ?" गुरु नानक - "भाई ! इसके नाक में एक दाना नहीं निकला, इससे यह सोच कर कि दाने - दाने पर मुहर है । हंसी आ गयी । इस दाने को खाने वाला दूर है, जब वह इसके पास आयेगा तब ही यह दाना अपने आप निकलेगा ।" 
वह मनुष्य किसी अन्य गांव को गया, वहां किसी से बात कर रहा था कि उसे छींक आ गयी और दाना निकल पड़ा, सम्मुख स्थित एक कबुतर ने उसे खा लिया ।
जिसका हो उसको मिले, नहीं अन्य पै जाय ।
हंस बोले नानक गुरु, भोक्ता दूर बसाय ॥३५॥

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