बुधवार, 19 अगस्त 2020

*(“तृतीयोल्लास” १०/१२)*

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“तृतीयोल्लास” १०/१२)*
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माता इष्ट रहै नहीं राऊ, 
दर्शन करत हि देहिं भरमाऊ । 
हमैं तुम्हें सब जगत विगारै, 
भरत खंड से उतरे पारै ॥१०॥ 
हे राजन् उनका माता जी इष्ट नहीं है । जो लोग माताजी के दर्शन करते हैं उनको वे भ्रमित कर देते हैं वे हम लोगों को अर्थात् साधरण जनता को और आप जैसे राजाओं सरदारों को माता से विमुख कर बिगाड़ते हैं वे भरतखंड से पार उतरेंगे ॥१०॥ 
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*उत्तर दिसा समुद्र पर चौकी*
उत्तर दिसा समंद के घाटा, 
बैठा दो चौकी रहै न वाटा । 
घाट घाट दयौ सब ही पूरी, 
परै नजर कीजे सिर दूरी ॥११॥ 
उनको देश में आने से रोकने के लिये उत्तर दिशा की तरफ समुद्र के किनारे रक्षकों की चौकियां स्थापित करवावें जिससे उनको आने का रास्ता ही प्राप्त न होवे । सारे तट पर पूर्ण रक्षक बिठावैं और उनके दिखते ही उनका शिर कलम करवा दे कटवा दे ऐसी आज्ञा देंवे ॥११॥ 
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तेज वचन सौं बोले राऊ, 
चौकीदार वेगि बैठाऊ । 
पूछे राव कवे सो आवें, 
षष्ट मास फिर विप्र सुनावे ॥१२॥ 
तेज बचनों में राजा ने कहा कि तुरन्त समुद्र तट पर चौकी बिठाओ और पूछा कि वे लोग कब आनेवाले हैं तो विप्र ने कहा छ: महिने में आने की संभावना है ॥१२॥ 
(क्रमशः)

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