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*जहँ मन माया ब्रह्म था, गुण इन्द्रिय आकार ।*
*तहँ मन बिरचै सबनि थैं, रचि रहु सिरजनहार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)*
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*
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*श्यामारूप । उत्तम भक्त । विचारपथ*
श्रीरामकृष्ण(भावमग्न)- तुम लोगों को कोई शंका हो तो पूछो । मैं समाधान करता हूँ ।
गोविन्द तथा अन्यान्य भक्त लोग सोचने लगे ।
गोविन्द- महाराज, श्यामारूप क्यों हुआ ?
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श्रीरामकृष्ण- वह तो सिर्फ दूर से वैसा दिखता है । पास जाने पर कोई रंग ही नहीं ! तालाब का पानी दूर से काला दिखता है । पास जाकर हाथ से उठाकर देखो, कोई रंग नहीं । आकाश दूर से नीले रंग का दिखता है । पास के आकाश को देखो, कोई रंग नहीं । ईश्वर के जितने ही समीप उतनी ही धारणा होगी कि उनके नाम-रूप नहीं । कुछ दूर हट आने से फिर वही ‘मेरी श्यामा माता’ । जैसे घासफूल का रंग ।
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“श्यामा पुरुष है या प्रकृति? किसी भक्त ने पूजा की थी । कोई दर्शन करने आया तो उनसे देवी के गले में जनेऊ देखकर कहा, ‘तुमने माता के गले में जनेऊ पहनाया है !’ भक्त ने कहा, ‘भाई, तुम्हीं ने माता को पहचाना है । मैं अब तक नहीं पहचान सका कि वे पुरुष है या प्रकृति ! इसीलिए जनेऊ पहना दिया था ।’
“जो श्यामा हैं वे ही ब्रह्म हैं । जिनका रूप है वे ही रूपहीन भी हैं । जो सगुण हैं वे ही निर्गुण हैं । ब्रह्म ही शक्ति है और शक्ति ही ब्रह्म । दोनों में कोई भेद नहीं । एक सच्चिदानन्दमय है और दूसरी सच्चिदानन्दमयी ।”
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गोविन्द- योगमाया क्यों कहते हैं ?
श्रीरामकृष्ण- योगमाया अर्थात् पुरुष-प्रकृति का योग । जो कुछ देखते हो वह सब पुरुष-प्रकृति का योग है । शिव-काली की मूर्ति में शिव के ऊपर काली खड़ी हैं । शिव शव की भाँति पड़े हैं, काली शिव की ओर देख रही हैं, - यह सब पुरुष-प्रकृति का योग है । पुरुष निष्क्रिय है, इसीलिए शिव शव हो रहे हैं । पुरुष के योग से प्रकृति सब काम करती है – सृष्टि, स्थिति, प्रलय करती है ।
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“राधाकृष्ण की युगलमूर्ति का भी यही अभिप्राय है । इसी योग के लिए वक्रभाव है । और यही योग दिखाने के लिए श्रीकृष्ण की नाक में मुक्ता और श्रीमती की नाक में नीलम है । श्रीमती का रंग गोरा, मुक्ता जैसा उज्जवल है । श्रीकृष्ण का रंग साँवला है, इसीलिए श्रीमती नीलम धारण करती है । फिर श्रीकृष्ण के वस्त्र पीले और श्रीमती के नीले हैं ।
(क्रमशः)
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