मंगलवार, 8 सितंबर 2020

*(“चतुर्थोल्लास” १०/१२)*

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
*(“चतुर्थोल्लास” १०/१२)*
*साध सती के कारणें, हरजी बरिषै मेह ।* 
*तिनके पाछे परसराम, दुनिया पालै देह ॥१०॥* 
परोपकारी संतों एवं सत्य धर्म का पालन करने वाली सती माताओं के लिये ही भगवान वर्षा करते हैं । परसराम जी कहते हैं कि उन संतों और सत्य धर्मी गऊ माताओं के पुण्य के पीछे ही दुनिया अपने शरीर का पालन करती है ॥१०॥ 
*पुनि राजा अब एती कीजै, करौ राज दुख नहीं दीजै ।* 
*केता अंस दुनी का आऊ, तीजौ अंस जु भाख्यो राऊ ॥११॥* 
गुरुजी ने राजा को कहा कि अब इतना काम करना, धर्म के आधार पर राज करना और किसी को दु:ख नहीं देना । तुम लोगो से कितना अंश कर वसूल करते हो तो राजा ने उत्तर दिया मैं तीसरा अंशकर वसूल करता हूं ॥११॥
*धराजु जैमल के ८०० पुत्र जेल से मुक्त कराना* 
*सुनो राव इतनी अब कीजै, सप्तमों, अंस दुनी को लीजे ।* 
*पुत्र आठ से बंदि में दीन्ह, यह तुम काम भला न कीन्ह ॥१२॥* 
गुरुजी ने कहा हे राजन् अब इतना काम करना कि दुनिया से करके रुप में सांतवां अंश लेना । आपने अपने आठ सौ पुत्रों को बंदी बनाकर कारागार में डाल रखा है यह तुम्हारा कार्य अच्छा भला नहीं है ॥१२॥ 
(क्रमशः)

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