मंगलवार, 8 सितंबर 2020

*माया का खेल देख श्रीरामकृष्ण की मूर्च्छा*

 

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*दादू स्वाद लागि संसार सब, देखत परलै जाइ ।* 
*इन्द्री स्वारथ साच तजि, सबै बंधाणै आइ ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)* 
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*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* 
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ* 
*माया का खेल देख श्रीरामकृष्ण की मूर्च्छा* 
“त्रिगुणातीत होना बड़ा कठिन है । ईश्वरलाभ किए बिना वह सम्भव नहीं । जीव माया के राज्य में रहता है । यही माया ईश्वर को जानने नहीं देती । इसी माया ने मनुष्य को अज्ञानी बना रखा है । हृदय एक बछड़ा लाया था । एक दिन मैंने देखा कि उसे उसने बाग में बाँध दिया है, चारा चुगाने के लिए । मैंने पूछा, ‘हृदय, तू रोज उसे वहाँ क्यों बाँध रखता है?’ हृदय ने कहा, ‘मामा, बछड़े को घर भेजूँगा । बड़ा होने पर वह हल में जोता जाएगा ।’ ज्योंही उसने यह कहा, मैं मुर्च्छित हो गिर पड़ा । सोचा, कैसा माया का खेल है ! कहाँ तो कामारपुकुर सिहोड़ और कहाँ कलकत्ता ! यह बछड़ा उतना रास्ता चलकर जाएगा, वहाँ बढ़ता रहेगा, फिर कितने दिन बाद हल खींचेगा ! इसी का नाम संसार है – इसी का माया है ।” 
“बड़ी देर बाद मेरी मूर्च्छा टूटी थी ।” 
(३) समाधि में 
श्रीरामकृष्ण प्रायः रातदिन समाधिस्थ रहते हैं – उनका बाहरी ज्ञान नहीं के बराबर होता है, केवल बीच बीच में भक्तों के साथ ईश्वरीय प्रसंग और संकीर्तन करते हैं । करीब तीन-चार बजे मास्टर ने देखा कि वे अपने छोटे तख्त पर बैठे हैं – भावाविष्ट हैं । थोड़ी देर बाद जगन्माता से बातें करते हैं । 
माता से वार्तालाप करते हुए एक बार उन्होंने कहा, “माँ, उसे एक कला भर शक्ति क्यों दी?” थोड़ी देर बाद फिर कहते हैं, माँ, समझ गया, एक कला ही पर्याप्त होगी । उसी से तेरा काम हो जाएगा – जीवशिक्षण होगा ।” 
क्या श्रीरामकृष्ण इसी तरह अपने अन्तरंग भक्तों में शक्तिसंचार कर रहे हैं? क्या यह सब तैयारी इसीलिए हो रही है की आगे चलकर वे जीवों को शिक्षा देंगे ? 
मास्टर के अलावा कमरे में राखाल भी बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण अब भी भावमग्न हैं, राखाल से कहते हैं, “तू नाराज हो गया था? मैंने तुझे क्यों नाराज किया, इसका कारण है; दवा अपना ठीक असर करेगी समझकर । पेट में तिल्ली अधिक बढ़ जाने पर मदार के पत्ते आदि लगाने पड़ते हैं ।” 
कुछ देर बाद कहते हैं, “हाजरा को देखा, शुष्क काष्ठवत् है । तब यहाँ रहता क्यों है? इसका कारण है, जटिला कुटिला* के रहने से लीला की पुष्टि होती है । (*श्रीराधा की सास और ननद – आयान घोष की माता और बहन ।) 
(मास्टर के प्रति) “ईश्वर का रूप मानना पड़ता है । जगद्धात्री रूप का अर्थ जानते हो ? जिन्होंने जगत को धारण कर रखा है – उनके धारण न करने से, उनके पालन न करने से जगत् नष्टभ्रष्ट हो जाय । मनरूपी हाथी को जो वश में कर सकता है, उसी के हृदय में जगद्धात्री उदित होती हैं ।” 
राखाल- मन मतवाला हाथी है । 
श्रीरामकृष्ण- सिंहवाहिनी का सिंह इसीलिए हाथी को दबाये हुए है । 
सन्ध्यासमय मन्दिर में आरती हो रही है । श्रीरामकृष्ण भी अपने कमरे में ईश्वर का नाम ले रहे हैं । कमरे में धूनी दी गयी । श्रीरामकृष्ण हाथ जोड़कर छोटे तख्त पर बैठे हैं – माता का चिन्तन कर रहे हैं । बेलघरिया के गोविन्द मुकर्जी और उनके कुछ मित्रों ने आकर प्रणाम किया और जमीन पर बैठे । मास्टर और राखाल भी बैठे हैं बाहर चाँद निकला हुआ है । जगत चुपचाप हँस रहा है । कमरे के भीतर सब लोग चुपचाप बैठे श्रीरामकृष्ण की शान्त मूर्ति देख रहे हैं । आप भावमग्न हैं । कुछ देर बाद बातें की । अब भी भावाविष्ट हैं । 
(क्रमशः)

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