🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🌷
भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ १७. सारग्राही का अंग)
*दादू काम गाय के दूध सौं, हाड़ चाम सौं नांहि ।*
*इहिं विधि अमृत पीजिये, साधु के मुख मांहि ॥१६॥*
जैसे गाय के बछड़े को गाय के दूध से प्रयोजन है न कि उसके सींग पूंछ से । ऐसे ही साधक भी साधु के मुख से उपदेश रूपी अमृत का पान करता है । उसके स्थूलत्वगौरवर्णत्व आदि धर्मों की तरफ नहीं देखता ।
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*॥ सुमिरण नाम ॥*
*दादू काम धणी के नाम सौं, लोगन सौं कुछ नांहि ।*
*लोगन सौं मन ऊपली, मन की मन ही मांहि ॥१७॥*
साधक का मुक्तिरुपी कार्य तो परमात्मा के नाम स्मरण से ही सिद्ध होगा, न कि संसार के पुरुषों से आसक्ति करने से । अतः आसक्ति को त्यागकर उदासीन रहना चाहिये । अन्यथा संसार का प्रेम भक्ति में बाधक बन जायेगा ।
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*जाके हिरदै जैसी होइगी, सो तैसी ले जाइ ।*
*दादू तू निर्दोष रह, नाम निरंतर गाइ ॥१८॥*
हे साधक ! तू तो निरन्तर हरिनामस्मरण करके अपने को निर्दोष बना ले । जिनकी जैसी भावना सन्तों के प्रति होती है, उनको उनकी भावना के अनुसार ही अपने आप फल मिल जाता है । महात्मा किसी को भी वर या शाप नहीं देते । अतः अपनी भावना अच्छी होनी चाहिये ।
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*दादू साध सबै कर देखना, असाध न दीसै कोइ ।*
*जिहिं के हिरदै हरि नहीं, तिहिं तन टोटा होइ ॥१९॥*
आत्मदृष्टि से या सारासार गृहण की दृष्टि से सब को परमात्मारूप से देखना चाहिये, क्योंकि ज्ञानी की दृष्टि में न कोई साधु है और न असाधु है । यदि किसी के हृदय में हरिचिन्तन नहीं है, तो उसी की हानि है । देखने वाले ज्ञानी को तो इसमें कोई हानि नहीं है । अतः साधक को शत्रु, मित्र, पशु, मनुष्य, देवता इन सभी को ब्रह्मदृष्टि से देखना चाहिये ।
श्रीभागवत में- “यह आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र, प्राणी, दिशाएं वृक्ष वनस्पति, नदी, समुद्र ये सब भगवान् के शरीर हैं, अतः सारा ब्रह्माण्ड भगवन्मय ही है । इनके रूप में भगवान् ही प्रगट हो रहे हैं, ऐसा समझकर अनन्यभाव से जो सामने दीखे, उसको भगवान् मानकर प्रणाम करता है, तो वह भक्त है ।”
(क्रमशः)
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