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*जब मन मृतक ह्वै रहै, इन्द्री बल भागा ।*
*काया के सब गुण तजै, निरंजन लागा ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ लै का अंग)*
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*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)*
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*
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(२)
*ब्रह्म त्रिगुणातीत है । ‘मुँह से नहीं बताया जा सकता’ ।*
मास्टर- क्या दया भी एक बन्धन है?
श्रीरामकृष्ण- वह तो बहुत दूर की बात ठहरी । दया सतोगुण से होती है । सतोगुण से पालन, रजोगुण से सृष्टि और तमोगुण से संहार होता है, परन्तु ब्रह्म सत्त्व, रज, तम इन तीनों गुणों से परे है – प्रकृति से परे है ।
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“जहाँ यथार्थ तत्त्व है वहाँ तक गुणों की पहुँच नहीं । जैसे चोर-डाकू किसी ठीक जगह पर नहीं जा सकते; वे डरते हैं कि कहीं पकड़े न जायें । सत्त्व, रज, तम ये तीनों गुण डाकू हैं । एक कहानी सुनाता हूँ, सुनो-
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“एक आदमी जंगल की राह से जा रहा था कि तीन डाकुओं ने उसे पकड़ा । उन्होंने उसका सब कुछ छीन लिया । एक डाकू ने कहा, ‘अब इसे जीवित रखने से क्या लाभ?’ यह कहकर वह तलवार से उसे काटने आया । तब दूसरे डाकू ने कहा, ‘नहीं जी, काटने से क्या होगा? इसके हाथ-पैर बाँधकर यहीं छोड़ दो’ ।
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वैसा करके डाकू उसे वहीं छोड़कर चले गये । थोड़ी देर बाद उनमें से एक लौट आया और बोला, ‘ओह ! तुम्हें चोट लगी ? आओ, मैं तुम्हारा बन्धन खोल देता हूँ’ उसे मुक्त कर डाकू ने कहा, ‘आओ मेरे साथ, तुम्हें सड़क पर पहुँचा दूँ’ बड़ी देर में सड़क पर पहुँचकर उसने कहा, ‘इस रास्ते से चले जाओ, वह तुम्हारा मकान दिखता है’ । तब उस आदमी ने डाकू से कहा, ‘भाई, आपने बड़ा उपकार किया; अब आप भी चलिए मेरे मकान तक; आइये’ डाकू ने कहा, ‘नहीं मैं वहाँ नहीं आ सकता; पुलिस को खबर लग जाएगी’ ।
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“यह संसार ही जंगल है । इसमें सत्त्व, रज, तम ये तीन डाकू रहते हैं – ये जीवों का तत्त्वज्ञान छीन लेते हैं । तमोगुण मारना चाहता है; रजोगुण संसार में फँसाता है; पर सतोगुण रज और तम से बचाता है । सत्त्वगुण का आश्रय मिलने पर काम, क्रोध आदि तमोगुण से रक्षा होती है । फिर सतोगुण जीवों का संसारबन्धन तोड़ देता है ।
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पर सतोगुण भी डाकू है – वह तत्त्वज्ञान नहीं दे सकता । हाँ, वह जीव को उस परमधाम में जाने की राह तक पहुँचा देता है और कहता है, ‘वह देखो, तुम्हारा मकान वह दीख रहा है !’ जहाँ ब्रह्मज्ञान है, वहाँ से सतोगुण भी बहुत दूर है ।
(क्रमशः)
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