🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीसंतगुणसागरामृत०२* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“चतुर्थोल्लास” ७/९)*
.
*काया माया कौण सी भाखी,*
*भ्रम जन्य द्रसे सति साखी ।*
*मन तृष्णां करि लागी माया,*
*कर्म आबरे तहां लगाया ॥७॥*
राजा ने प्रश्न किया कि काया माया किसको आप बताते हैं तो गुरु ने कहा कि मृग तृष्णा के समान भ्रमजन्य यह संसार सत्य दिखाई देता है यही माया है । यह चंचल मन तृष्णां लोभ आदि के वशीभूत होकर इस माया में लिप्त है, फंसा है, और उसी के अनुसार मनुष्य विभिन्न कर्म करता है ॥७॥
.
*ध्यानं बिना जग धंधे लागा,*
*को इक हरिजन नीकसि भागा ।*
*परमारथ को कीन्ह संसारु,*
*ताको भूले मुगध गवारु ॥८॥*
गुरुजी कहते हैं कि बिना ब्रह्म का ध्यान किये या कार्य का विचार किये बिना संसार अपने अपने कार्यो में व्यस्त लग रहा है कोई हरि भक्त ही इस गोरख धंधे से निकल कर भागता है । ईश्वर ने परोपकार व जन कल्याण के लिये इस संसार की रचना की है किन्तु मूर्ख मोह में फंसा व्यक्ति परोपकार को तो भूल जाता है और स्वार्थ के कार्य ही करता रहता है अत: कष्ट प्राप्त करता है ॥८॥
.
*हरिजन निमित कियो परमारथ,*
*बिनां भक्ति जीवन ही अकारथ ।*
*भजन, भोजन, खान रु पांनां,*
*हरिजन काज किये है रांमां ॥९॥*
ईश्वर ने इस संसार की रचना हरि भक्तों के लिये की है ताकि उनके द्वारा जन कल्याण व परोपकार होता रहे । हरि भक्ति के बिना मानव जीवन निरर्थक व्यर्थ है । वस्त्र भोजन, खान, पान, आदि की रचना भगवान ने हरि भक्तों के लिये ही की है । उन्हीं के कारण संसार का भी भला होता है ॥९॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें