मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

समर्थता का अंग २१ - १/४

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🦚 #श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग २१ - १/४)
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*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
*दादू कर्त्ता करै तो निमष मैं, कीड़ी कुंजर होइ ।*
*कुंजर तैं कीड़ी करै, मेट सकै नहिं कोइ ॥२॥*
सृष्टि को बनाने वाला परमात्म सर्वसमर्थ है । वह क्षण मात्र में हस्ती के सदृश बलवान् पुरुष को चींटी के तुल्य दुर्बल बना सकता है । तथा चींटी के तुल्य दुर्बल को महा बलवान् बना देता है । उसकी आज्ञा को मिटाने वाला इस विश्व में कोई नहीं है । 
कोई कवि कहता है कि- उस सर्व नियन्ता अद्भुत कर्म करने वाले भगवान् कृष्ण को नमस्कार हो जो धूलि से धूसरित होने पर भी तेजोमय दीख रहे हैं । द्वारिका के नाथ होकर भी गाय चरा रहे हैं । राजाओं के भी महाराजा होते हुए भी अर्जुन के सारथी बने हुए हैं । भीष्म पितामह को भयंकर दीखते हुए भी प्रह्लाद के लिये आल्हादजनक बने हुए हैं और सोलह हजार एक सौ आठ रानियों द्वारा सेवित होने पर भी जितेन्द्रिय कहलाते हैं । जैसे सूर्य का बिम्ब एक देश में दीखता हुआ सारे विश्व को प्रकाशित करता हुआ सर्वत्र दीखता है वैसे ही भगवान् श्री कृष्ण भी एकदेशी होते हुए भी सर्वगत है । साकार होते हुए भी भगवान् सच्चिदानन्द स्वरूप हैं ।
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*दादू कर्त्ता करै तो निमष में, राई मेरु समान ।*
*मेरु को राई करै, तो को मेटै फरमान ॥३॥*
ईश्वर क्षण भर में राई को सुमेरुतुल्य तथा सुमेरु को राई के बराबर तुच्छ बना सकते हैं । अतः उनकी आज्ञा को कोई भंग नहीं कर सकता । 
भगवान् की अद्भुत शक्ति का वर्णन करते हुए लिख रहे हैं कि-
भगवान् श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी को अनन्त ब्रह्माण्ड अनन्त ब्रह्मा और बछड़ों सहित गोप तथा अनन्त विष्णुओं का दर्शन कराया । जिस कृष्ण भगवान् के चरणोदक को शंकर त्रिमूर्ति धारण करके अपने शिर पर धारण करते हैं । ऐसे अद्भुत शक्तिशाली अविकृत सच्चिदानन्दमय श्रीकृष्ण शम्भु ब्रह्मा जिनके कृपा पात्र हैं । जिन्होंने ब्रह्मा को त्रिलोकी का स्वामी बनाया जो हमारे कुल देवता हैं उनकी सदा जय हो ।
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*दादू कर्त्ता करै तो निमष में, जल मांही थल थाप ।*
*थल मांही जलहर करै, ऐसा समर्थ आप ॥४॥*
ईश्वर अपनी माया नाम की अद्भुत शक्ति से जल की जगह स्थल और स्थल की जगह समुद्र बना सकता है । लिखा है कि-
जिसकी इच्छा से समुद्र सूक कर स्थल तथा स्थल समुद्र बन जाता है । धूलि के कण पर्वत तथा सुमेरु पर्वत मिट्टी का कण बन जाता है । व्रज तृण और तृण व्रज सदृश तथा बह्नि शीतल, हिम अग्नि सदृशदाहक बन जाता है । उस अद्भुत लीला करने वाले देव को हमारे नमस्कार हो ।
(क्रमशः)

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