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🦚 #श्रीसंतगुणसागरामृत०२ 🦚
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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“पंचमोल्लास” २२/२४)
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*भई अन्यायति अतिसै दीन,*
*गई निसा, उदै रवि कीन ।*
*नृपति चल्यो दर्स कौ आयौ,*
*आगे चिहृन और ही पायौ ॥२२॥*
राजा धराजू जैमल दर्शन करने के लिये संत जी के पास बाग में पहुंचा किन्तु आगे उसने वहां दूसरा ही नजारा देखा राजा ने कहा महाराज संत जी यहां जो कुछ हो रहा है वह बात घटना कुछ समझ में नहीं आ रही है । मक्खी बनने के बाद दोनों दासियां बहुत दीन उदास हो गई और रात्रि बीत गई और सूर्य का उदय हो गया ॥२२॥
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*राजा बाग में गया तो मक्खीयों की आवाज आई*
*राजा कहयौ कहा यहु स्वांमी,*
*इहै बात कछु जाई न जानी ।*
*पदमसिंघ राव की दासी,*
*करण पठाई घात हमारी ॥२३॥*
राजा ने कहा कि ये मक्खियां लटक रहीं यह क्या है यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही । संतों ने कहा पदमसिंघ ने अपनी दूतियों को हमारा घात करवाने के लिए भेजी है ये वही है ॥२३॥
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*नृप कहैं ये आहि अनाथू,*
*भौसागर में पकरौ हाथू ।*
*हे गुरुजी कृपा कीजे,*
*इन आतम कूं सरणों लीजे ॥२४॥*
राजा ने कहा हे संतों ये दूतियां बहुत अनाथ है ये भव सागर में डूब रही है आप इनका हाथ पकडकर उबारों हे गुरुजी इन पर आप कृपा करे और इन आत्माओं को अपने शरण में लीजिये ॥२४॥
(क्रमशः)
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