सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

*भगतन हित भागवत वित्त१ कृत कीन्हों*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*दादू वाणी प्रेम की, कमल विकासै होहि ।*
*साधु शब्द माता कहैं, तिन शब्दों मोह्या मोहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ शब्द का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*व्यासदेवजी* 
*भगतन हित भागवत वित्त१ कृत कीन्हों,*
*व्यासजी विशेष क्षीर नीर निरवार्यो२ है ।*
*व्यास प्रति शुक मुनि आदि अंत पढि गुनि३,* 
*प्रथम सुनाय नृप प्रीक्षत उधार्यो है ॥*
*सूत को स्कंद बारह दियो वर ताही बारे,*
*श्रोता शौनकादि सो सदैव पन४ पार्यो है ।*
*राघो कहै सार है संहार करे पापन को,* 
*आपन को उत्तम सुनै तैं फल च्यार्यो है ॥४१॥*
व्यास जी ने भक्तों के हित के लिये भागवत रूप परम धन१ को उत्पन्न करने का कार्य किया है । जैसे हंस जल और दूध को अलग२ अलग कर देता है वैसे ही उस भागवत में व्यासजी ने विशेष रूप से सत्य, असत्य, आत्मा, अनात्मा का स्वरूप भिन्न भिन्न करके बताया है । उसी भागवत को व्यासजी से शुकदेव मुनि ने आदि अंत तक पढ़कर तथा भली-भांति विचार३ करके प्रथम राजा परीक्षित को सुनाकर उसका उद्धार किया । 
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फिर व्यासजी ने भागवत के बारह स्कंद सूतजी को पढ़ाया और उसी समय पुराण वक्ता होकर सदा हरि यशगान करने तथा नैमिषारण्य में रहने का वर भी दिया । उसी वर रूप प्रतिज्ञा४ का पालन शौनकादिक ऋषियों ने भी सदा भली-भांति किया अर्थात् सूतजी से पुराण सुनते रहे । भागवत शास्त्र का सार है, स्वयं पढ़ने और विचारने वाले के लिये भी उत्तम है, सुनने से पापों का संहार करता है तथा श्रोता वक्ता आदि को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष रूप चारों फलों का प्रदाता है ।
(क्रमशः)

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