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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*८. लै कौ अंग ~ १/४*
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निराकारं लयं रांमं, लय लयं विलयं तनं ।
कहि जगजीवन अंग संगं, जाग्रित जीवनं जनं ॥१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि निराकार राम में लय लगायें और उसी लय में तन विलय कर देते हैं । संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव जाग्रत हो तो परमात्मा अंग संग रहते हैं ।
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लै जिन टूटै एक छिन, जन की जीवन एह ।
कहि जगजीवन आसिरै, सब सुख पावै देह ॥२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि लै एक क्षण भी न टूटने पाये ऐसा ही जीवन हो । संत कहते हैं कि इसी के सहारे या आसरे से यह शरीर सुखी हो पाता है ।
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लै अबिगत अलख अगाध हरि, परम पुरिष लै रांम ।
कहि जगजीवन नांम लै, सदगुरु दे सब ठांम ॥३॥
संतजगजीवन कहते हैं कि लय ही अविगत अलख व थाह से परे परमात्मा का स्वरूप है । संत कहते हैं कि प्रभु स्मरण करें, प्रभु जिस स्थान पर भी ले जावें लै लगी रहे ।
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जगजीवन दिल दोति१ कर, मन मसि२ मांही राख ।
लै लेखनि हरि नांम लिखि, उर कागद मांही साख ॥४॥
{१. दोति - दवात(=मसिपात्र)} (२. मसि - स्याही)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि दिल को दवात करें मन की स्याही बनायें लय की लेखनी से हृदय में हरि का नाम लिखें ।
(क्रमशः)
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