शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

पीव पहिचान का अंग २० - २६/२९


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🦚 #श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी

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(#श्रीदादूवाणी ~ पीव पहिचान का अंग २० - २६/२९)
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*सांई मेरा सत्य है, निरंजन निराकार ।*
*दादू विनशै देखतां, झूठा सब आकार ॥२६॥*
*राम रटण छाड़ै नहीं, हरि लै लागा जाइ ।*
*बीचैं ही अटकै नहीं, कला कोटि दिखलाइ ॥२७॥*
*उरैं ही अटकै नहीं, जहाँ राम तहँ जाइ ।*
*दादू पावै परम सुख, विलसै वस्तु अघाइ ॥२८॥*
सच्चा साधक चमत्कार दिखाने वाले मायिक प्रपंचों के प्रलोभन से मोहित होकर मध्य में ही भगवान् के नाम स्मरण को नहीं छोड़ते किन्तु अहर्निश ब्रह्म के नाम स्मरण द्वारा संसार से मुक्त होकर परमानन्दस्वरूप ब्रह्म का अनुभव करता हुए नित्य तृप्त रहते हैं । वेदान्तसंदर्भ संग्रहसार में- जिस साधक का निरन्तर समाधि में स्थिर रहने से अन्तःकरण विमल हो गया है वह अपार सुखस्वरूप अपने निजरूप को साक्षात् देखकर संतुष्ट रहता है । जिस ब्रह्म को परमहंस महात्मा तत्वमसि वेदवाक्यों द्वारा अभेद बोध कराकर ज्ञान स्वरूप बतलाते हैं ।
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*दादू उरैं ही उरझे घणे, मूये गल दे पास ।*
*ऐन अंग जहँ आप था, तहाँ गये निज दास ॥२९॥*
बहुत से सकाम साधक ऋदधि सिद्धि प्राप्त करके संसार में ही उलझ गये । तथा आशा पाश से बंधे हुए संसार में जन्मते मरते रहते हैं । कोई कोई निष्काम भक्त ही निर्द्वन्द्व अवस्था को प्राप्त करके भगवान् का स्मरण करते हुए मुक्त हुए हैं ।
वेदान्तसारसिद्धान्त में- जो अखण्ड ब्रह्माकार अन्तःकरण की वृत्ति है जिसमें आनन्द की लहरें चल रही हैं, द्वैत ज्ञान सर्वथा नष्ट हो गया है, ऐसी विमल वृत्ति को न त्याग कर दिन रात अनुपम सुख स्वरूप अपने निजरूप ब्रह्म में रमण करते हुए अपने प्रारब्ध को सुख वृत्ति से भोगते हुए पूरा करो ।
हे विद्वान् ! ब्रह्मानन्दरसास्वाद में लगे हुए चित्त से समाधि में सदा स्थित बने रहो ।
(क्रमशः)

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